रायबरेली और अमेठी से सस्पेंस का पर्दा उठा, रायबरेली से राहुल तो अमेठी से के.एल.शर्मा लोकसभा प्रत्याशी
लखनऊ। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में लोकसभा की जिस सीट पर सियासी दिग्गजों की निगाहे लगी हुई थी उस सीट से आखिरकार शुक्रवार को सस्पेंस का पर्दा उठ ही गया।आम जनमानस में भी यूपी की रायबरेली और अमेठी सीट चर्चा का विषय बनी हुई थी।इन दोनो लोकसभा सीटो पर कांग्रेस पार्टी तथा आलाकमान ने कल देर रात सस्पेंस खत्म करते हुए राहुल गांधी को रायबरेली से और गांधी परिवार के करीबी व कांग्रेस के चालीस साल पुराने सिपाही केएल शर्मा को अमेठी से उम्मीदवार घोषित कर दिया। उम्मीदवार घोषित होते ही शुक्रवार को राहुल गांधी ने रायबरेली से तो केएल शर्मा ने अमेठी से अपना नामांकन कर दिया। दरअसल रायबरेली सीट को लेकर कांग्रेस का इतिहास बहुत पुराना है। इस सीट पर हमेशा से कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा है। फिरोज गांधी, इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक रायबरेली में अपनी जीत दर्ज कराते आये हैं। कांग्रेस पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने स्वास्थ्य कारणों के चलते लोकसभा छोड़कर राज्यसभा का रास्ता अपना लिया तो कांग्रेस की परंपरागत सीट रायबरेली को बचाना कांग्रेस के लिए सबसे महत्वपूर्ण हो गया। उधर अमेठी से भाजपा की वर्तमान सांसद स्मृति ईरानी का राहुल गांधी को ललकारना और यह कहना कि मुझसे हारने के बाद राहुल गांधी डर गये हैं ने चुनाव को और भी दिलचस्प बनाने का काम किया। भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी की एक नई राजनीतिक छवि उभर कर देश के सामने आयी इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
स्मृति ईरानी चाहती थीं कि राहुल अमेठी से चुनाव लड़े ताकि वो उनकी इस उभरती राजनीतिक छवि को धाराशायी कर भाजपा की सबसे कद्दावर नेता बन जाएं लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकारों ने विशेषकर राहुल गांधी ने अपनी सूझ-बूझ से स्मृति ईरानी को चारो खाने चित कर दिया। कांग्रेस के लिए रायबरेली को बचाना न सिर्फ महत्वपूर्ण था बल्कि यहां से पूरे यूपी में इंडिया गठबंधन को एक स्वस्थ संदेश भी देना जरूरी था।
अमेठी से कांग्रेस के 40 साल पुराने सिपहसालार केएल शर्मा को इस चुनावी रणभूमि में उतार कर पूरी कांग्रेस पार्टी ने न सिर्फ स्मृति ईरानी बल्कि पूरी भाजपा के रणनीतिकारों को भी धाराशायी कर दिया है।
अमेठी से यदि राहुल गांघी चुनावी रणभूमि में उतरते तो भारतीय जनता पार्टी स्मृति ईरानी को जिताने और राहुल गांधी को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक देती लेकिन केएल शर्मा को लेकर न सिर्फ स्मृति ईरानी बल्कि स्वयं पीएम नरेंद्र मोदी सोच में पड़ गए हैं कि अब रैली में वो किसको ललकारेंगे। देखा जाए तो स्मृति ईरानी के राजनीतिक सफर की सफलता का पूरा श्रेय अगर किसी को जाता है तो वो राहुल गांधी ही हैं। राहुल गांधी के ईर्द-गिर्द स्मृति ईरानी की राजनीति की धूरी है जो अब लगभग समाप्त होते दिख रही है। केएल शर्मा की यदि बात करें तो इसमें कोई दो राय नहीं कि वो अमेठी और रायबरेली के गली-कूचे से पूरी तरह वाकिफ हैं। रायबरेली तथा अमेठी से गांधी परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव लड़े केएल शर्मा ही पूरा मैदान गांधी परिवार के लिए तैयार करते थे। अब वे स्वयं इस मैदान में ताल ठोंकने उतर गए है। स्मृति ईरानी अब राहुल गांधी को ललकारने की बात भूलकर केएल शर्मा को ललकारती नजर आयेंगी जो स्वयं उनके राजनीतिक कद के लिए शोभायमान नहीं होगा। रायबरेली सीट से राहुल गांधी को हराना असंभव है वहीं अमेठी से स्मृति ईरानी का जीतना भी फिलहाल संभव नहीं क्योंकि केएल शर्मा के लिए भाजपा अपनी पूरी ताकत कभी नहीं झोंकेगी यह तय है। साफ है कांग्रेस की जबरदस्त रणनीति ने न सिर्फ भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को बल्कि मेन स्ट्रीम मीडिया को भी चारो खाने चित कर दिया है।