यह बात है 5 मार्च 1966,समय 11 बजकर 30 मिनट हुए थे कि आसमान में लड़ाकू विमानों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। ये विमान भारतीय वायुसेना के थे। और उस वक़्त असम के हिस्स में मिजोरम था, जिसे मिजो हिल्स कहा जाता था। आइजोल में बमबारी शुरू हो गई। ये धमाके 5 मार्च से शुरू हुए और 13 मार्च तक होते रहे।
मगर इस बमबारी की कहानी शुरू होती है साल 1960 से, जब असम सरकार ने असमियाा लैंग्वेज को राजकीय भाषा घोषित किया तो मिजो लोग ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया क्योंकि जिन्हें असमिया नहीं आती थी, उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिलने वाली थी।
विरोध बढ़ता गया। 28 फरवरी 1961 में लालडेंगा ने MNF यानी मिजो नैशनल फ्रंट बना लिया। प्रोटेस्ट होता रहा है, वक़्त गुज़रता रहा। और फिर असम रेजिमेंट ने अपनी सेकंड बटालियन को बर्खास्त करने का फैसला कर लिया, ये साल था 1964, इस बटालियन में मिजो लोगों की संख्या ज्यादा थी। इस बटालियन के बर्खास्त होने से जो प्रोटेस्ट असमिया भाषा के ख़िलाफ शांतिपूर्वक हो रहा था, वो हिंसक हो चला। क्योंकि बटालियन से निकाले गए मिजो लोगों लालडेंगा का MNF जॉइन कर लिया। और फिऱ बन गई मिजो नैशनल आर्मी। और ये आर्मी बग़ावत पर उतर आई। जिसकी मांग मिजोरम को भारत से तोड़ लेने की थी। एक आज़ाद मुल्क़ के तौर पर।
पाकिस्तान ने मिजो नैशनल आर्मी को भारत के ख़िलाफ़ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, चीन भी इस साजिश में शामिल हो गया। इस वजह से MNF खतरनाक साबित होने लगा। जब उनपर सख्ती दिखाई गई तो इन उग्रवादियों को छिपने के लिए म्यांमार और पूर्वी पाकिस्तान का आसमान मिल गया।
राजद्रोह के केस में लालडेंगा अरेस्ट तो हुए मगर बाद में कोर्ट से बरी हो गए। और फिर आया 1965 का साल, जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया। इस दौरान लालडेंगा उस वक़्त प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री पर दबाव बनाने लगे कि और मिजो को अलग कर देने की धमकियां देने लगे।
11 जनवरी 1966 को ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री की मौत हो गई। इस दौरान लालडेंगा मिजो को अलग देश बनाने की जुगत में लग गए। 24 जनवरी को इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं। 4 दिन बाद ही मिजो नैशनल फ्रंट के उग्रवादी भारतीय फोर्स को मिजोरम से निकालने के लिए ‘ऑपरेशन जेरिको’ चलाते हैं। आइजोल औऱ लुंगलाई में असम राइफल्स की छावनी पर अटैक होता है।
आखिर क्यों असम राइफल्स के खिलाफ हुआ था विद्रोह?
क्या हुआ था मिजोरम में जिसकी वजह से सेना को निपटने के लिए कहा गया?
जब मिजोरम पर बम बरसे तो कौन उड़ा रहा था फाइटर प्लेन?
क्या मिजोरम की घटना को लेकर कर दी गई बेरहम राजनीति?
मोहम्मद असगर
‘5 मार्च 1966 को कांग्रेस ने मिजोरम में असहाय लोगों पर वायुसेना से हमला कराया था। क्या मिजोरम के लोग भारत के नागरिक नहीं थे? यहां के निर्दोष नागरिकों पर कांग्रेस ने हमला कराया था। आज भी 5 मार्च को पूरा मिजोरम शोक मनाता है। कांग्रेस ने इस सच को छिपाया, कभी घाव भरने की कोशिश नहीं की। उस वक्त इंदिरा गांधी पीएम थीं।’
ये कहना है देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बारे में। कितनी बेरहम है ना राजनीति। दो ऐसे दुखद पहलुओं को मणिपुर हिंसा के जवाब में इस तरह सामने रखा गया, कि अपना दामन पाक साफ दिखे। पहली घटना मिजोरम में भारतीय वायुसेना के विमान से हवाई हमले तो मिजोरम में हुए हवाई हमले की। लेकिन यहां कुछ सवाल हैं। सवाल ये कि संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर जवाब देते हुए 10 अगस्त को पीएम मोदी ने मिजोरम की जिस घटना का ज़िक्र किया, कैसी घटनी थी वो? क्या इंदिरा गांधी ने अपने ही देश के लोगों पर बम गिराए? या जिस अंदाज़ में उस घटना का ज़िक्र संसद में किया गया, क्या वो प्रोपेगंडा है? क्या है मिजोरम में हवाई बमबारी का सच?
तो चलिए ज़रा इतिहास के पन्नों को पलटकर देख लेते हैं। तारीख़ थी 5 मार्च 1966, घड़ी में 11 बजकर 30 मिनट हुए थे कि आसमान में लड़ाकू विमानों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। ये विमान भारतीय वायुसेना के थे। और उस वक़्त असम के हिस्स में मिजोरम था, जिसे मिजो हिल्स कहा जाता था। आइजोल में बमबारी शुरू हो गई। ये धमाके 5 मार्च से शुरू हुए और 13 मार्च तक होते रहे।
मगर इस बमबारी की कहानी शुरू होती है साल 1960 से, जब असम सरकार ने असमियाा लैंग्वेज को राजकीय भाषा घोषित किया तो मिजो लोग ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया क्योंकि जिन्हें असमिया नहीं आती थी, उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिलने वाली थी।
इसके साथ ही वहां पर विरोध बढ़ता गया। 28 फरवरी 1961 में लालडेंगा ने MNF यानी मिजो नैशनल फ्रंट बना लिया। प्रोटेस्ट होता रहा है, वक़्त गुज़रता रहा। और फिर असम रेजिमेंट ने अपनी सेकंड बटालियन को बर्खास्त करने का फैसला कर लिया, ये साल था 1964, इस बटालियन में मिजो लोगों की संख्या ज्यादा थी। इस बटालियन के बर्खास्त होने से जो प्रोटेस्ट असमिया भाषा के ख़िलाफ शांतिपूर्वक हो रहा था, वो हिंसक हो चला। क्योंकि बटालियन से निकाले गए मिजो लोगों लालडेंगा का MNF जॉइन कर लिया। और फिऱ बन गई मिजो नैशनल आर्मी। और ये आर्मी बग़ावत पर उतर आई। जिसकी मांग मिजोरम को भारत से तोड़ लेने की थी। एक आज़ाद मुल्क़ के तौर पर।
पाकिस्तान ने मिजो नैशनल आर्मी को भारत के ख़िलाफ़ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, चीन भी इस साजिश में शामिल हो गया। इस वजह से MNF खतरनाक साबित होने लगा। जब उनपर सख्ती दिखाई गई तो इन उग्रवादियों को छिपने के लिए म्यांमार और पूर्वी पाकिस्तान का आसमान मिल गया।
राजद्रोह के केस में लालडेंगा अरेस्ट तो हुए मगर बाद में कोर्ट से बरी हो गए। और फिर आया 1965 का साल, जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया। इस दौरान लालडेंगा उस वक़्त प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री पर दबाव बनाने लगे कि और मिजो को अलग कर देने की धमकियां देने लगे।
11 जनवरी 1966 को ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री की मौत हो गई। इस दौरान लालडेंगा मिजो को अलग देश बनाने की जुगत में लग गए। 24 जनवरी को इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं। 4 दिन बाद ही मिजो नैशनल फ्रंट के उग्रवादी भारतीय फोर्स को मिजोरम से निकालने के लिए ‘ऑपरेशन जेरिको’ चलाते हैं। आइजोल औऱ लुंगलाई में असम राइफल्स की छावनी पर अटैक होता है।
इंदिरा गांधी को कमजोर नेता के रूप में देखा जा रहा था, और मिजो विद्रोह भी शुरू हो गया। भारत मुश्किल दौर से गुज़र रहा था। कभी अकाल, कभी पाकिस्तान से जंग जैसी मुसीबतों के झेलना पड़ रहा था।
29 फरवरी 1966 में MNF ने मिजो के भारत से अलग होने की घोषणा की और अचानक हमला कर दिया। कई इलाकों में सेना के ठिकानों पर कब्जा कर लिया। उग्रवादी इतने ताक़तवर हो चले थे कि लगातार असम राइफल पर हमला कर रहे थे। सरकारी खजाने लूटे जाने लगे थे।
इस बात का निर्मल निबेदन ने अपनी किताब ‘मिजोरम : द डैगर ब्रिगेड’ (Mizoram The Dagger Brigade) में बाखूबी लिखा है। चंफई में जब असम राइफल पर हमला हुआ तो उग्रवादी 70 राइफलें, 16 स्टेन गन, 6 लाइट मशीन और कई राइफलें लूट ले गए। 85 जवान बंधक बना लिए गए। दो सैनिक किसी तरह इस हमले से बच निकले। उन्होंने हमले की जानकारी सैन्य बलों को दी।
सेना ने हेलिकॉप्टर से उस इलाके में हथियार पहुंचाने की कोशिश की, मगर उग्रवादियों की गोलीबारी से नाकाम रही।
दूसरी तरफ इंदिरा गांधी कई चुनौतियों से जूझ रही थीं, मिजोरम में हालात तेजी से बिगड़ रहे थे। उग्रवादियों के हमले चरम पर पहुंच गए थे। मिजोरम को भारत से अलग करने के मंसूबों को नाकाम करने के लिए इंदिरा गांधी ने सेना को जवाबी कार्रवाई करने का हुक्म दे दिया। और फिर 5 मार्च 1966 को 4 लड़ाकू विमान आइजोल पहुंचे। MNF के उग्रवादियों पर बमबारी शुरू कर दी गई। वायु सेना की यह बमबारी 13 मार्च तक जारी रही। सेना की बमबारी से घबराकर MNF के उग्रवादी म्यांमार और पूर्वी पाकिस्तान भाग गए। बताया यह जाता है कि इस बमबारी से 13 नागरिकों की मौत हुई थी। विष्णु शर्मा ने ‘इंदिरा फाइल्स’ किताब में इस हवाई हमले के बारे में विस्तार से जिक्र किया है। आइजोल के चार प्रमुख इलाके रिपब्लिक वेंग, मेइच्छे वेंग, डावरपुड वेंग और छिंगा वेंग पूरी से खत्म हो गए।
प्लेन उड़ा रहे थे पायलट और कलमाड़ी
उस वक्त ईस्टर्न कमांड प्रभारी सैम मानेकशॉ थे। 4 मार्च को जेट फाइटर्स से फायरिंग के बाद अगले दिन विमानों ने 5 घंटे बमबारी की। दो पायलट राजेश पायलट और सुरेश कलमाड़ी थे। जो बाद में राजनीति में आए।
इस हवाई बमबमारी के बारे तमाम बातें हुईं। मार्च 1966 में कलकत्ता के अखबार ‘हिंदुस्तान स्टैंडर्ड’ ने इंदिरा गांधी का एक बयान छापा कि विमान केवल जवानों और उनकी रसद को ‘एयर ड्रॉप’ करने के लिए भेजे गए थे। तब सवाल यह भी उठा कि रसद पहुंचाने के लिए चार-चार जेट फाइटर्स की क्या जरूरत थी?
1998 में मिजोरम के मुख्यमंत्री बनने वाले पू जोरामथंगा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि मैं एमएनएफ में अगर शामिल हुआ था तो 1966 में हुई इसी बमबारी के खिलाफ हुआ था। आज तक मिजोरम के लोग 5 मार्च को ‘जोराम नी’ (March 5 as Zoram Day) यानी ‘जोराम दिवस’ के तौर पर इस दिन का शोक मनाते हैं।
तमाम आरोप प्रत्योरप के बीच एक सवाल ये भी उठता है कि अगर उग्रवादियों की वजह से मिजोरम भारत से अलग हो जाता तो फिर दोष किसे दिया जाता?इंदिरा गांधी को या उग्रवादियों को?
इस लिहाज से एक सवाल ये भी जायज़ बनता है कि क्या इंदिरा ने सेना की कार्रवाई से मिजोरम को बचा लिया?
हालांकि इस बमबारी ने मिज़ो विद्रोह को उस समय भले ही कुचल दिया हो लेकिन मिज़ोरम में अगले दो दशकों तक अशांति छाई रही।
वर्ष 1986 में नए प्रदेश के गठन के साथ ही मिज़ोरम में अशांति का अंत हुआ।
तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ समझौते के बाद एमएनएफ़ के प्रमुख रहे लालडेंगा ने प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, और उन्होंने उसी स्थान पर भारतीय झंडा फहराया, जहां 20 साल पहले एमएनएफ़ का झंडा फहराया गया था।