कन्या पूजन करने के लिए झोपड़पट्टियों में ढूंढा जता है माँ का स्वरुपबाबुल के घर-आँगन से जब बेटियों की डोली निकलती है , तो माता-पिता फूट-फूट कर रोतें है ! समाज में आज भी ऐसे घर-आँगन है जहाँ बेटियों के जन्म लेते ही घर के आँगन में उदासी छा जाती है ! क्योंकि वह एक बेटी है ! सरकार नारी सम्मान और उसके अस्तित्व को बचाने के लिए चाहे जितने भी जतन कर डाले पर दकियानूसी समाज का कड़वा सच यह है कि आज भी लोग गर्भ में पल रही एक बेटी के जन्म लेते ही कन्या भ्रूण हत्या करने में पीछे नही , गर्भ में पल रही एक बेटी अपनी माँ से पूछती है , माँ ! आखिर मेरा कसूर क्या है ? क्या मैं एक बेटी हूँ इसलिए जन्म लेते ही मुझे मार दिया जाता है ! आज भी बेटियां जब घरों में जन्म लेती है ! तो घर-आँगन में सोहर गीत नही गाये जाते ! बल्कि बेटी का नाम सुनते ही घरो में मायुषी छा जाती है ! इस देश में नारी को देवी का दर्जा दिया जाता है ! लेकिन अफ़सोस जब नवरात्रि का पारण होता है ! तो देवी स्वरुप कन्याओ को भोग लगाने के लिए आलिशान घरो से निकल कर लोग मंदिरो सहित पास-पड़ोस से लेकर मलिन बस्तियों में झोपड़पट्टियों की दहलीज तक मासूम बच्चियों में माँ का स्वरुप ढूंढते नज़र आते है !मलिन बस्तियों के निर्धन परिवारों के आँगन में जन्म लेने वाली यह वह बच्चियां है जिन्हें आम दिनों में समाज घृणा की दृष्टि से देखता है ! जिन्हें लोग बात करना तो दूर छूना भी पसंद नही करते! लेकिन नवरात्रि के अंतिम दिन में लोगों को इन मैली-कुचैली बच्चियों में देवी स्वरूपा माँ नज़र आती है ! जिनकी चरण-वंदना करके घर – परिवार में खुशहाली और आशीर्वाद की कामना की जाती है !