प्रतिवर्ष दो से ढाई हज़ार जेनेटिक बीमारी से ग्रसित बच्चों का पीजीआई में होता है इलाज- डाॅ फड़के
लखनऊ। दुर्लभ रोग क्या है और कैसे हो जाता है इसके बारे में अकसर लोग नहीं जानते हैं। ऐसे में यदि इन रोगों की अनदेखी कर दी जाए तो आप बड़ी-बड़ी समस्याओं का सामना करने पर मजबूर हो सकते हैं। हर वर्ष फ़रवरी माह के अंत में पूरे विश्व में दुर्लभ रोग दिवस इसलिए मनाया जाता है ताकि ऐसी बीमारियों का सही और समय पर उपचार हो सके। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी रेयर रोग दिवस की एक थीम रखी गई है जिसका शिर्षक है ‘दुर्लभ रोगग्रस्त योद्धाओं की विजय, एक सफ़र दृड़ता और साहस की ओर’।
हमारे देश में ऐसी दुर्लभ बीमारियों को लेकर लोगों के मन में जागरूकता की बेहद कमी है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य है लोगों को रेयर डिज़ीज़ के बारे में जागरूक करना। बता दें कि रेयर डिजीज डे की स्थापना यूरोपियन यूनियन ने वर्ष 2008 में की।
लखनऊ के प्रतिष्ठित संजय गांधी स्नात्कोत्तर आर्युविज्ञान संस्थान(एसजीपीजीआई) में 24 फ़रवरी दिन शनिवार को प्रदेश भर से बड़ी संख्या में दुर्लभ रोग से ग्रसित बच्चों ने अपने माता-पिता के साथ पहुंचकर रेयर डिज़ीज़ डे ख़ुशी के साथ मनाया।
डा.शोभा आर फड़के(एचओडी मेडिकल जेनेटिक्स विभाग) ने बताया कि आज एसजीपीजीआई में जेनेटिक बीमारी वाले बच्चों का एक प्रकार से गेट टू गेदर का आयोजन हुआ है। जेनेटिक बीमारियों की यदि हम बात करें तो बहुत सारी बीमारियां हैं लगभग 5 हज़ार से अधिक। यह बीमारी बहुत कम मात्रा में मिल पाती है। एक बीमारी 30 हज़ार में दो चार ही मिल पाती हैं लेकिन कई परिवारों में एक या इससे अधिक बच्चे जेनेटिक बीमारी का शिकार हो जाते हैं। ऐसे बच्चों का इलाज और इसका निदान कैसे हो इसके लिए पीजीआई का जेनेटिक्स विभाग कार्यशील है। जो बच्चे दुर्लभ बीमारी का शिकार होते हैं उनका उपचार करने के साथ-साथ समाज में ऐसे बच्चों ने क्या मकाम हासिल किया है और किस तरह से ऐसे बच्चे लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं इसके लिए ही हमने आज ऐसा कार्यक्रम आयोजित किया है। केवल मैं नहीं मेरे जैसे अन्य चिकित्सकों ने सरकार से समय-समय पर सहायता की मांग रखते आये हैं। वर्ष 2021 में सरकार ने नेशनल पाॅलीसी फ़ार रेयर डिज़ीज़ की संरचना की जिसके तहत ऐसे बच्चों की मदद की जा रही है। कुछ निजी कंपनियां भी इस पर बेहतर काम कर रही हैं। नेशनल पाॅलीसी फ़ार रेयर डिज़ीज ऐसी बीमारियों पर बहुत बेहतर काम कर रही है जिसके बेहतर परिणाम हमें आज देखने को मिल रहे हैं। एसजीपीजीआई में प्रतिवर्ष दो से ढाई हज़ार मरीज़ आते हैं। सरकार से हमें अभी 6 करोड़ रूपये का अनुदान मिला है जिसके तहत हमने कई बच्चों का इलाज किया है। सरकार पचास लाख की सहायता तुरंत देती है। लेकिन मंहगी दवाओं के लिए सरकार ने पोर्टल खोला है जिस पर अप्लाई करके आर्थिक सहायता प्राप्त की जा सकती है। इस मौके पर एनएचएम की प्रबंध निदेशक पिंकी जोएल(आईएएस) ने ऐसी बीमारियों और ऐसे बच्चों के इलाज के लिए हर संभव आर्थिक सहायता प्रदान करने का आश्वासन दिया। डाॅ शालीन कुमार ने बताया कि हालांकि सभी बीमारियां रोगियों को अत्यधिक पीड़ा पहुंचा सकती हैं, दुर्लभ बीमारियां सामान्य विकारों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण चुनौतियां पेश करती हैं। इलाज के लिए उचित सहायता न देने के अपराधबोध से परिवार और देखभाल करने वाले भी प्रभावित होते हैं। ऐसे में हमारा यह फ़र्ज़ बनता है कि हम सही इलाज करें और ऐसे बच्चों को समाज से जोड़ सकें।
अक्सर जेनेटिक्स बीमारियों का पता देर से चलता है लेकिन इससे घबराने या दुखी होने की बात नहीं है हमें ऐसी चुनौतियों से निपटना होगा। ऐसे बच्चों से और ऐसे बच्चों के माता-पिता से मैं कहूंगा कि सहनशीलता और दृढ़ संकल्प से हमें ऐसी रेयर डिज़ीज़ से निपटना होगा।
मोदी जी मेरे मन की बात भी सुन लिजिए
बनारस की रहने वाली अंशुमन रस्तोगी जेनेटिक्स बीमारी का शिकार अपने दोनों बच्चों रोली रस्तोगी तथा अक्क्षत रस्तोगी के साथ रेयर डिज़ीज़ डे में पीजीआई पहुंची। उनकी 28 वर्षीय रोली रस्तोगी ने स्वयं बताया कि वो और उसका 26 वर्षीय भाई बचपन में ही इस बीमारी का शिकार हो गए थे। रोली ने बताया कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वे स्वयं अपने भाई के साथ मिलीं थीं। रोली ने बताया कि उस समय स्वयं मोदी जी ने हर संभव मदद का वायद किया था जिसका उन्हें अब भी इंतज़ार है। रोली कार्मस ग्रेजुएट है और समाज सेवा करने की इच्छुक है उसका कहना है कि वो और उसका भाई ठीक हो गए तो ऐसे रेयर डिज़ीज़ बीमारी के शिकार बच्चों की मदद करेंगी। उसकी इच्छा है कि वो भी एक सामान्य नागरिक की तरह जिंदगी जीना चाहती है ताकि वो अपने माता-पिता के काम आ सके।
एक इंजेक्शन की क़ीमत 3 करोड़ रूपय, बिहार सरकार नहीं कर सकी मदद
बिहार से आयी अपने पति अमित के साथ आई पिंकी देवी का साढ़े पांच साल का बेटा ऐसी ही बीमारी का शिकार है। पिंकी ने बताया कि मेरे बच्चे को जो इंजेक्शन लगेगा उसकी क़ीमत 3 करोड़ रूपये है। उसका कहना है कि बिहार सरकार से हर संभव मदद मांगी लेकिन कोई मदद नहीं मिली न ही सही इलाज मिला। पिंकी को एसजीपीजीआई के बारे में सुना तो यहां चली आयीं। उसने बताया कि यहां इलाज तो सही हो रहा है लेकिन फ़िलहाल आर्थिक मदद नहीं मिली है। जौनपुर से आयी शमा फ़िरदौस का 8 वर्षीय बेटा मोहम्मद यासीन को उप्र सरकार से भरपुर मदद मिल रही है और वो एसजीपीजीआई के इलाज से काफ़ी संतुष्ट है।
आईये जानते हैं दुर्लभ रोगों से जुड़ी कुछ ज़रूरी बातें-
दुर्लभ रोगों की असल वजह अनुवांशिक मानी जाती है। वहीं कुछ मामलों में बैक्टीरिया, वायरस, इंफ़ेक्शन, एलर्जी इसके कारणों में से एक हैं। हालांकि आंकड़ों की मानें तो 50 प्रतिशत दुर्लभ रोग के मामले बच्चों में देखे गए हैं।इसके लक्षण की बात करें तो अलग-अलग लक्षण देखे गए हैं। वहीं हर व्यक्ति को एक जैसे लक्षण भी नज़र नहीं आते। यही कारण है कि इन रोगों का पता लगाने में अक्सर देर हो जाती है और बाद में इलाज करवाने में दिक्कत भी महसूस होती है।
रेयर डिज़ीज़ व्यक्ति का पूरा जीवन प्रभावित कर सकते हैं। ये रोग न केवल व्यक्ति की क्षमता को ख़त्म कर सकते हैं बल्कि उसके लिए जानलेवा भी साबित हो सकते है।दुर्लभ रोगों के उदाहरण की बात की जाए तो सिस्टिक फ़ाइब्रोसिस एक ऐसी बीमारी है जो सांस या पाचन तंत्र को प्रभावित कर सकती है। इससे अलग अन्य बीमारियों में मस्कुलर डिस्ट्रॉफ़ी आदि शामिल हैं।