महिला सशक्तिकरण केवल कागजों तक सीमित-मुहम्मद साजिद
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को दुनिया भर में महिलाओं के अधिकारों, समानता और सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है। यह दिन समाज में महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाने के साथ-साथ उनके अधिकारों और लैंगिक समानता के प्रति जागरूकता फैलाने का भी अवसर है। 19वीं और 20वीं शताब्दी में महिलाओं को शिक्षा, रोजगार और मतदान का अधिकार नहीं था। 1908 में न्यूयॉर्क की कपड़ा मिल की महिलाओं ने बेहतर वेतन और काम करने की स्थिति के लिए हड़ताल की। जिसके चलते पहली आधिकारिक मान्यता 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल ने इसे महिला दिवस के रूप में मान्यता दी थी। 1977 में संयुक्त राष्ट्र ने इसे आधिकारिक रूप से अपनाया और इसे महिलाओं के अधिकारों के लिए एक वैश्विक आंदोलन बना दिया।
भारत की आधी आबादी मानी जानी वालीं महिलाओं के लिए यह दिन बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। ज्ञातव हो कि वर्ष 2023 में 128वां संविधान संशोधन विधेयक (महिला आरक्षण विधेयक) पारित हुआ, तो इसे भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की ऐतिहासिक पहल माना गया, लेकिन 2024 के आम चुनावों के बाद संसद में महिलाओं की संख्या घट गई। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या महिला सशक्तिकरण केवल कागजों तक सीमित है? देश में महिलाओं की जनसंख्या लगभग 50 फीसद है, लेकिन राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी आबादी के लिहाज से बेहद कम है। 2019 के लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 78 (14.39 फीसद) थी, जबकि 2024 के बाद यह संख्या घट कर 74 हो गई है। महिला विधेयक लाने के बावजूद अगर संसद में महिलाओं की संख्या घट रही है, तो निश्चिंत तौर पर यह गंभीर चिंता का विषय है। महिला सशक्तिकरण सिर्फ कानून से नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और समाज की मानसिकता बदलने से आएगा। इसके लिए जरूरी है कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं के उत्थान पर चर्चा हो।
छत्तीसगढ़ विधानसभा में सबसे अधिक महिला विधायक
देश के किसी भी राज्य की विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 20 फीसद से अधिक नहीं है। हालांकि, इसमें छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक 18 फीसद महिला विधायक हैं, जबकि हिमाचल प्रदेश में मात्र एक महिला विधायक है जबकि मिज़ोरम में एक भी महिला विधायक नहीं है।
2029 से महिला आरक्षण विधेयक प्रभावी
वर्ष 2029 के चुनावों से पहले विधेयक लागू नहीं हो सकता क्योंकि इसे जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया से जोड़ा गया है। दूसरी तरफ यह भी एक सच्चाई है कि राजनीतिक दल अब भी महिलाओं को पर्याप्त टिकट नहीं दे रहे हैं। कई दलों में महिलाओं को चुनावी चेहरा तो बनाया जाता है, लेकिन सत्ता पुरुषों के हाथ में रहती है। इसलिए जरूरी है कि आरक्षण को जल्द लागू किया जाए। सभी पार्टियों के लिए कम से कम 33 फीसद टिकट महिलाओं को देना अनिवार्य किया जाना चाहिए।
भारत की प्रसिद्ध महिलाएं जिन्होंने बदलाव किया
इंदिरा गांधी
महिला सशक्तिकरण की बात जब की जाती है तो हमारे देश में ऐसी महिलाओं की कमी नहीं जिन्होंने अपनी मेहनत से मिसाल कायम कर मकाम हासिल किया है। इसमें सबसे पहले नाम भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का है। इंदिरा गांधी ने पूरे विश्व में भारत को वैश्विक पहचान दिलाई।1971 पाकिस्तान को दो भागों में विभाजित कर बांग्लादेश निर्माण में अहम भूमिका निभाई।
सावित्रीबाई फुले
भारत की पहली महिला शिक्षिका हैं। जिन्होंने महिलाओं और दलितों की शिक्षा के लिए क्रांति लाई।
फातिमा शेख
भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका जिन्होंने सावित्रीबाई फुले और ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर 19वीं शताब्दी में महिला शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अपने घर को स्कूल के रूप में उपयोग करने की अनुमति दी, जहां दलित और मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा प्रदान की जाती थी। उनका यह कदम उस समय के सामाजिक मानदंडों के खिलाफ था, लेकिन उन्होंने शिक्षा के माध्यम से समाज सुधार का मार्ग प्रशस्त किया। आज उन्हें भारत में महिला शिक्षा की अग्रदूत माना जाता है। भारत सरकार ने उनकी याद में 2022 में एक डाक टिकट भी जारी किया।
कल्पना चावला
भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री हैं। जिन्होंने अंतरिक्ष में उड़ान भरकर देश का नाम रोशन किया।
अन्ना राजम मल्होत्रा
भारत की पहली महिला आईएएस(1951 बैच ) अधिकारी थीं। उनका जन्म 17 जुलाई, 1927 को केरल के निरनम में हुआ। वे प्रसिद्ध मलयालम लेखक पैलो पॉल की पोती थीं।
किरण बेदी
भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी हैं। किरण बेदी पुलिस महानिदेशक के पद से सेवानिवृत होने के बाद राज्यपाल बनीं। पुलिस सुधारों में किरण बेदी का अहम योगदान भुलाया नहीं जा सकता।
पी.टी. ऊषा
भारत की पहली महान एथलीट हैं। उन्हें ‘उड़न परी’ कहा जाता है।
मैरी कॉम
छह बार वर्ल्ड बॉक्सिंग चौंपियन रह चुकीं मैरी कॉम ने महिला खेलों में भारत का नाम ऊंचा किया।