पेट या निचले हिस्से में सूजन या दर्द को न करें नज़रअंदाज़, ओवेरयिन ट्यूमर के हो सकते हैं लक्षण
लखनऊ। एसजीपीजीआई की गाइनोकालाजी ओपीडी में 42 वर्षीय दो बच्चों की मां के ओवेरियन ट्यूमर का सफ़ल आपरेशन कर 11 किलो का ट्यूमर निकाला गया। महिला पेट में दर्द के बाद परामर्श के लिए एसजीपीजीआई आई थी। एसजीपीजीआई की गाइनोकालाजिस्ट डाॅ अंजू रानी ने बताया कि महिला 5 महीने से पेट की सूजन की तकलीफ़ से परेशान थी।
डाॅ अंजू रानी ने बताया कि महिला का जब अल्ट्रासाउंड कराया गया तो जांच में महिला के अंडेदानी में बड़ी गांठ/ट्यूमर पाया गया। जिसका उपचार सर्जरी द्वारा ही संभव था। आपरेशन के द्वारा अंडेदानी से ओवेरियन ट्यूमर को सफ़लतापूर्वक निकाला गया। डाॅ अंजू रानी ने बताया कि ट्यूमर का आकार लगभग एक फुटबॉल (30×25 सेमी एक फुट व्यास) के बराबर था। इस ट्यूमर के अंदर लगभग 7.5 लीटर सिनपक और 3.5 किलो ठोस पदार्थ की मात्रा थी यानी लगभग 11 किलो का ट्यूमर। आपरेशन कर ट्यूमर को सफ़लतापूर्वक बाहर निकाले जाने के बाद मरीज़ ने शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जिसके बाद महिला को आपरेशन के पांचवे दिन हीं अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी। महिला के ट्यूमर का सफ़ल आॅपरेशन करने के लिए डाॅ अंजू रानी, स्त्री रोग सलाहकार के साथ डॉ. इरा दुबे सीनियर रेजिडेंट, डॉ. नीतिका, सीनियर रेजिडेंट, डॉ. प्रज्ञा, एनेस्थेटिस्ट, नर्सिग स्टाफ़- शिव कुमारी, प्रियंका और दिव्या तथा ओटी तकनीशियन – बीरभान और वंदना शामिल थीं।
जानते हैं ओवेरियन ट्यूमर के लक्षण, कारण और इलाज
एसजीपीजीआई के स्त्री रोग विशेषज्ञ डाॅ अंजू रानी ने बताया कि यदि किसी स्त्री के पेट में या उसके निचले हिस्से में अक्सर दर्द बना रहता हो तो ऐसे में किसी भी स्त्री रोग विशेषज्ञ से तुरंत सलाह लेने की आवश्यकता है क्योंकि कम उम्र की लड़कयिों में ओवेरयिन कैंसर के केस लगातार बढ़ रहे हैं।
डाॅ अंजू रानी ने बताया कि आमतौर पर ट्यूमर की आशंका 30 से 40 वर्ष की उम्र में महिलाओं को सबसे ज़्यादा होती है पर अब कम उम्र में भी लड़कियों में ये बीमारी तेजी से बढ़ रही है। ओवेरयिन ट्यूमर, ओवरीज़ में धीरे-धीरे बढ़ने वाला एक टिशू होता है जो कि मांस से ही बनता है। ये ट्यूमर कैंसर भी बन जाता है। ओवेरयिन ट्यूमर होने पर मरीज़ को एब्डॉमनिल पेन, प्राइवेट पॉर्ट में दर्द या सूजन महसूस हो सकती है। महिलाओं को चाहिए कि ऐसे हालात में इसे नज़रअंदाज़ न करें और परामर्श का सहारा लें।
डाॅ अंजू रानी ने बताया कि ओवेरयिन ट्यूमर होने पर अक्सर मरीज़ों को खाने में दिक्कत होती है, कुछ लोग पेट फूलने की शिकायत लेकर डॉक्टर के पास आते हैं। इसके अलावा कॉन्स्टपिेशन, पीरयिड्स में गड़बड़ी, बैक पेन या एब्डॉमनिल पेन भी ट्यूमर के लक्षण हो सकते हैं।
क्यों हो जाता है ओवेरियन ट्यूमर?
डॉ अंजू रानी के मुताबिक अंडाशय में कैंसर की स्थिति तब जटिल बन जाती है, जब उसके इलाज में देरी हो। लोग बीमारी का इलाज कराने के बजाए दूसरे तरीके अपनाने में लग जाते हैं जो ग़लत है। इससे समस्या गंभीर हो सकती है। उन्होंने बताया कि यह जेनेटिक भी हो सकती है। यदि आपके परिवार में किसी को है तो इसकी आशंका बढ़ जाती है। महलिाओं में ओवेरयिन कैंसर होने का एक कारण इनफर्टलिटिी भी होता है हालांिक ये ठोस कारण नहीं है। एक अनुमान के चलते डॉक्टर इसे एक कारण मानते हैं।
ओवेरयिन ट्यूमर का पता लगाने के लिए कौन से टेस्ट हों?
डाॅ अंजू रानी ने बताया कि ओवेरयिन ट्यूमर का पता लगाना आसान नहीं है। ओवरीज़ एब्डॉमनिल कैविटी के डीप साइड में होती है इसलिए मरीज़ को ट्यूमर होने का अहसास नहीं होता। इसलिए आपको कुछ भी अलग महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं। डॉक्टर पैल्विक एग्ज़ाम के ज़रिए ओवरी में बदलाव की जांच करते हैं। जैसे-जैसे ट्यूमर का साइज़ बढ़ता है, ब्लैडर और रैक्टम पर प्रेशर बढ़ता है। इसके लिए डॉक्टर ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउंड भी करते हैं। इसके अलावा पैल्विक सीटी-स्कैन, पैल्विक एमआरआई स्कैन, कैंसर एंटीजन 125 नाम का ब्लड टेस्ट भी किया जाता है। ट्यूमर का पता लगाने के लिए डॉक्टर बायोप्सी भी करते हैं। जितनी जल्दी ट्यूमर का पता चलेगा, इलाज उतना आसान होगा।
ओवेरियन ट्यूमर का इलाज क्या है?
डाॅ अंजू रानी ने बताया कि ओवेरयिर ट्यूमर का इलाज सर्जरी द्वारा ही संभव है क्योंकि ज़्यादातर मरीज़ अर्ली स्टेज पर इलाज नहीं करवा पाते इसलिए ऑपरेशन ही एक विकल्प बचता है। महिलाओं को समय रहते लक्षणों की पहचान करनी चाहिए क्योंकि अगर केस ज़्यादा जटिल है तो ओवरी निकालने की ज़रूरत भी पड़ सकती है जैसा कि इस केस में किया गया। अगर समय रहते ट्यूमर का पता चल जाए तो टार्गेट थैरेपी, हॉर्मोन थैरेपी या दवाओं से इसका इलाज संभव है। इसके बाद अगर कैंसर के लक्षण ट्यूमर में होते हैं को कीमोथैरेपी भी दी जाती है। डाॅ अंजू रानी ने बताया कि ट्यूमर का इलाज बिलकुल संभव है पर आपको अपने शरीर के छोटे से छोटे लक्षण पर ग़ौर करना होगा। कई बार मरीज़ लास्ट स्टेज पर डॉक्टर के पास पहुंचता है ऐसे में इलाज में भी काफ़ी जटिलताएं हो जातीं हैं, इसलिए समय रहते अपने लक्षणों के मुताबिक इलाज करवाएं।