विश्व हेड इंज्योरी डे
ज़रा सी भी चोट सिर में लगे तो तुरंत डाक्टर से संपर्क कर इलाज कराएं
लखनऊ। भारत ही नहीं पूरे विश्व में हेड इंजरी मौत की एक बड़ी समस्या बन चुकी है। हेड इंजरी की यदि हम बात करें तो आंकड़ों के मुताबिक 30 पर्सेंट लोगों की मौत हो जाती है और 60 पर्सेंट रिकवरी के बाद भी पूरी तरह से नॉर्मल नहीं हो पाते हैं। उनमें किसी न किसी प्रकार की डिसेबिलिटी रहती है। केवल 10 पर्सेंट ही ठीक हो पाते हैं। एक्सपर्ट की माने तो इसकी बड़ी वजह जागरूकता की कमी है। सिर की चोट अगर मामूली भी है तब भी इसे क़तई हल्के में न लें, अगर नजरअंदाज किया तो ऐसे में भारी नुकसान हो सकता है। कई बार सिर में चोट (हेड इंज्यूरी) लगने पर ख़ून नहीं निकलता. लेकिन हो सकता है सिर के अंदर ब्लीडिंग हो रही हो और ये क्लॉट यानि खून का थक्का बन जाए। अक्सर लोग इसे सामान्य मानकर नज़र अंदाज़ कर देते हैं, लेकिन ये बेहद गंभीर मामला है। इसलिए सिर में ज़रा सी भी चोट लगते ही तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
गंभीर बात यह है कि सिर की चोट कई दिन बाद असर दिखाती है। कुछ मामलों में तो यह कई साल बाद उभरती है। इसलिए इसकी अनदेखी करना स्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक हो सकता है। यही वजह है कि लोगों को जागरूक करने के लिए हर वर्ष 20 मार्च को विश्व सिर की चोट (हेड इंज्यूरी ) जागरुकता दिवस या वर्ल्ड हेड इंज्यूरी अवेयरनेस डे मनाया जाता है।
संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के एपेक्स ट्रॉमा सेंटर, में न्यूरोसर्जरी विभाग के सहयोग से शारीरिक चिकित्सा और पुनर्वास विभाग ने बुधवार 20 मार्च 2024 को विश्व सिर चोट जागरूकता दिवस मनाया। इसके लिए एपेक्स ट्रॉमा सेंटर से वॉकथॉन का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से सड़क यातायात दुर्घटनाओं से सिर की चोट की रोकथाम के बारे में आम जनता में जागरूकता पैदा करना था। संस्थान के निदेशक प्रो. आर के धीमन ने इस बात पर विशेष ज़ोर देते हुए कहा कि सड़क यातायात दुर्घटनाओं में सिर की चोट को रोकने के लिए हेलमेट पहनना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों को बचपन से ही यातायात नियमों का पालन करना सिखाया जाना चाहिए।
न्यूरोसर्जरी के विभाग के प्रमुख प्रो. अवधेश जयसवाल ने बताया कि सिर की चोट के पीड़ितों के जीवन को बचाने के लिए उचित उपचार की शीघ्र शुरुआत महत्वपूर्ण है। प्रो. अरुण श्रीवास्तव ने सड़क यातायात दुर्घटनाओं और संबंधित सिर की चोटों की घटनाओं को कम करने के लिए यातायात नियमों के सख़्त कार्यान्वयन और सख़्त पालन पर ज़ोर दिया। इसमें एसजीपीजीआई और एपेक्स ट्रॉमा सेंटर के विभिन्न संकाय, रेज़िडेंट डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ़ शामिल हुए।
इस अवसर पर सिर की चोट से पीड़ित रोगियों और उनकी देखभाल करने वालों के साथ एक पैनल चर्चा के साथ एक जागरूकता कार्यक्रम का भी आयोतन किया गया। चर्चा का उद्देश्य सिर की चोट, निदान और उपचार के बारे में जागरूकता फैलाना था, जिसमें ऐसे रोगियों के चोट से पूर्व के स्तर पर पुनर्वास पर विशेष ध्यान दिया गया था।
एपेक्स ट्रॉमा सेंटर के प्रभारी प्रो. अरुण श्रीवास्तव ने बताया कि किसी भी प्रकार की दर्दनाक मस्तिष्क की चोट और सिर की चोट के बाद शीघ्र पुनर्वास अत्यंत महत्वपूर्ण है। एपेक्स ट्रामा सेंटर के एडीशनल चिकित्सा अधीक्षक प्रो. आर. हर्षवर्धन ने बताया कि पुनर्वास चिकित्सा का उद्देश्य रोगियों को उनकी दैनिक गतिविधियों में यथासंभव स्वतंत्र बनाना और उन्हें ज़ल्द से ज़ल्द समाज में फिर से एकीकृत करना है।
पीएमआर के एसोसिएट प्रो. सिद्धार्थ राय ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि ऐसे गंभीर रूप से बीमार मामलों में जल्दी ठीक होने, जटिलताओं और विकलांगता को कम करने के लिए शीघ्र हस्तक्षेप और पुनर्वास बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी बताया कि दीर्घकालिक पुनर्वास से मरीज़ों और उनके परिवार पर इलाज की लागत कम करने में मदद मिलती है। पीएमआर विशेषज्ञता किसी भी प्रकार की न्यूरोलॉजिकल कमज़ोरी और पक्षाघात वाले रोगियों की देखभाल के लिए चिकित्सा और पैरामेडिकल उपचार दृष्टिकोण दोनों के साथ समग्र देखभाल प्रदान करती है।
कार्यक्रम में दबाव घावों (Pressure Sores) की रोकथाम और उपचार, सिर की चोट के बाद बोलने और निगलने की समस्याओं और रोगियों के लिए चाल प्रशिक्षण और हाथों के कार्य-प्रशिक्षण जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई। पैनल में सीनियर रेजिडेंट डॉ. स्निग्धा मिश्रा, डॉ. अंजना जी, वरिष्ठ फिज़ियोथेरेपिस्ट ब्रजेश त्रिपाठी, कमल भट्ट, मधुकर दीक्षित और अंकिता कर्ण ने प्रतिभागिता की।