बदलते संसार में लगातार रिश्तों के मायने भी बदलते जा रहे हैं और रिश्तों को लोग मतलब की निगाह से देख रहे हैं। चाहे मां-बाप का रिश्ता हो या भाई बहन का या बाप बेटे का हो या मां बेटे का सभी मतलबी रिश्ते हो गए हैं। आलम यह है कि जीते जी तो अपने लोगों को सुख दे नहीं पाते, लेकिन अपनों के मरने के बाद भी लोगों के पास कुछ घंटे और कुछ दिन नहीं है कि अपने लोगों का ढंग से अपनी संस्कृति के हिसाब से उनका अंतिम संस्कार कर सके। इसका फायदा व्यापार करने वाले लालची लोग उठा रहे हैं,क्योंकि उन्हें पता है कि इस आधुनिक युग में रिश्तों का मतलब खत्म हो चुका है।सब कुछ केवल एक जगह जाकर टिक गया है और वह है पैसा और इसी का फायदा सुखांत नाम की कंपनी उठा रही है जो की अंतिम संस्कार का पूरा जिम्मा उठाती है।
एक विशेष प्रदर्शनी जो भारत के मानवीय मूल्यों को शर्मसार होता दिखा रही है। यह कंपनी जो अंतिम संस्कार क्रिया करवाएगी। कम्पनी की सदस्यता फीस हैं 37500/- रुपए। जिसमें अर्थी, पंडित, नाई, कांधा देने वाले, साथ में चलने वाले, राम नाम सत्य बोलने वाले सब लोग कम्पनी के ही होंगे। और तो और अस्थियां विसर्जन भी कम्पनी ही करवाएगी।
इसे देश का New start up भी समझ सकते हैं, जो अभी 50 लाख प्रॉफिट तो कमा चुकी है परंतु आने वाले समय में उसका कारोबार 2000 करोड़ होने की संभावना है। क्योंकि कंपनी को पता है की हिन्दुस्तान में रिश्ते निभाने का टाईम किसी के पास नहीं हैं। ना बेटे के पास न भाई के पास और न ही किसी अन्य रिश्तेदारों के पास।