मात्र आजमगढ़ में है एशिया की दूसरी दक्षिण मुखी देवी दुर्गा की मूर्ति

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मात्र आजमगढ़ में है एशिया की दूसरी दक्षिण मुखी देवी दुर्गा का मंदिर विश्व स्तर पर विख्यात आजमगढ़ के दूसरे दक्षिण मुखी देवी दुर्गा के मंदिर में सदा जलती रहती है भक्तों की दीपक की ज्योति।

आज नवरात्र के पहले दिन आजमगढ़ शहर के मुख्य चौक पर स्थित दक्षिण मुखी देवी दुर्गा के दरबार में भक्तों का भारी जन सैलाब उमड़ पड़ा। आज नवरात्र के दिन शहर स्थित प्राचीन व प्रसिद्ध दक्षिण मुखी देवी दुर्गा के मन्दिर पर हजारों श्रद्धालुओं ने माता के दरबार में आकर अपना मत्था टेका, प्रसाद, फल-फूल, नारियल चढ़ाकर पूजा अर्चना की। शहर में इस स्थान का अपना एक अलग महत्व है क्योंकि दक्षिण एशिया में दो ही दक्षिण मुखी देवी दुर्गा का मन्दिर है। एक कोलकता में और दूसरी यहां आजमगढ़ में। दूसरी खास बात यह कि पुजारी के परिवार में परिस्थितियां कोई भी हो लेकिन कभी भी माॅं का श्रृंगार व पूजन नहीं रूका। यहां बारहों महीने श्रद्धालुओं का शीष झुकता है। दक्षिण एषिया में मात्र दो दक्षिण मुखी देवी का मन्दिर होने से इसकी महत्ता और बढ़ जाती है। प्रतिदिन माॅं का श्रृंगार होता है और दिन भर पूजन-अर्चन का सिलसिला चलता रहता है। मन्नत पूरी होने पर भी भक्त माता का श्रृंगार करवाते है।
कहा जाता है कि वर्तमान समय में जहां शहर का मुख्य चैक है, वहां सैकड़ो वर्ष पूर्व जंगल और झाड़िया हुआ करती थीं। थोड़ी ही दूरी पर तमसा नदी बहती थी जिसके जगह-जगह रेत के टिले बन गयें थे। देवी जी के मन्दिर की उत्पत्ति के बारे में लोगों की धारणा है कि भैरो तिवारी नामक एक भक्त ने यहीं एक टीले के पास बैठ कर तप करने के लिए बालू को हटाकर समतल बनाने का प्रयास किया तो उन्हें वहां एक काला पत्थर नजर आया जब खुदाई करके देखा तो वह देवी दुर्गा की प्रतिमा थी। प्रतिमा के बारें में जानकारी मिलने पर वहां हजारों श्रद्धालु पूजन-अर्चन के लिए जुट गये और वहां पर मन्दिर का निर्माण कराया गया। स्वयं प्रकट हुई इस प्रतिमा की एक विषेषता यह भी है कि इसका मुख दक्षिण दिषा में है जबकि भारत ही नही पूरे एशिया में केवल कोलकाता प्रान्त में देवी दक्षिणेष्वर का मन्दिर है जिसकी प्रतिमा का मुख दक्षिण दिशा में है।

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