पीजीआई के एंडोक्राइनोलाजी विभाग द्वारा थायराइड विकारों पर शैक्षिक सीएमई आयोजित
लखनऊ। विश्व थायराइड दिवस एक वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम है जो हर साल 25 मई को मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य थायराइड रोग के बोझ, रोगी के अनुभव और थायराइड बीमारियों के अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन और उपचार के लिए प्रतिबद्ध सभी लोगों को मान्यता देना है। थायरॉइड रोग शायद दुनिया भर में सबसे ज़्यादा प्रचलित अंतःस्रावी विकारों में से एक है; भारत भी इसका अपवाद नहीं है। थायरॉइड रोग पर किए गए विभिन्न अध्ययनों से अनुमान लगाया गया है कि लगभग 4.2 करोड़ भारतीय इससे प्रभावित हैं। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञानसंस्थान के एंडोक्राइनोलॉजी विभाग ने नर्सिंग कॉलेज के सहयोग से एक व्यापक सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) कार्यक्रम आयोजित करके विश्व थायराइड दिवस मनाया। एडवांस्ड डायबिटीज सेंटर के नर्सिंग कॉलेज ऑडिटोरियम में आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य स्वास्थ्य पेशेवरों और छात्रों के बीच थायराइड विकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और उनकी समझ को गहरा करना था।
विश्व थायराइड दिवस (WTD) का महत्व
विश्व थायराइड दिवस के महत्व पर अपनी बात रखते हुए संस्थान के निदेषक प्रो. डॉ आर के धीमन ने बताया कि थायरॉयड ग्रंथि थायरॉयड हार्माेन का उत्पादन करती है जो सामान्य वृद्धि और ऊर्जा चयापचय के लिए आवश्यक है। थायरॉयड डिसफंक्शन आम है, आसानी से पहचाना जा सकता है और आसानी से इलाज योग्य है, लेकिन अगर इसका निदान नहीं किया जाता है या इसका इलाज नहीं किया जाता है, तो इसके गंभीर प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं। आयोडीन की कमी वाले लोगों में, थायरॉयड की शिथिलता सबसे आम तौर पर थायरॉयड ऑटोइम्यूनिटी के कारण होती है – जिसमें ग्रेव्स रोग, हाशिमोटो थायरॉयडिटिस और प्रसवोत्तर थायरॉयडिटिस शामिल है जिसमें थायरॉयड-विशिष्ट ऑटोरिएक्टिव एंटीबॉडीज शामिल हैं। आयोडीन की कमी और अधिकता दोनों ही हाइपोथायरायडिज्म के साथ-साथ हाइपरथायरायडिज्म का कारण बन सकते हैं।
कार्यक्रम का प्रारंभ एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के प्रो. डॉ. सुभाष बी यादव ने इस अवसर पर प्रतिनिधियों का अभिवादन किया और समुदाय में थायराइड स्वास्थ्य के महत्वपूर्ण महत्व को रेखांकित किया। कार्यक्रम का सफल आयोजन एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के संकाय डॉ. शिवेंद्र वर्मा और डॉ. बिभूति द्वारा किया गया, ताकि सभी उपस्थित लोगों के लिए एक सहज और आकर्षक अनुभव सुनिश्चित किया जा सके। महामारी विज्ञान संबंधी अध्ययनों से पता चलता है कि 1 प्रतिशत पुरुषों और 5 प्रतिशत महिलाओं में चिकित्सकीय रूप से पता लगाने योग्य थायरॉइड नोड्यूल्स पाए जाते हैं, तथा उम्र बढ़ने के साथ-साथ आयोडीन की कमी वाले समुदायों में इसका प्रचलन बढ़ता जाता है।
सीएमई की मुख्य बातें
सीएमई में अग्रणी विशेषज्ञों द्वारा कई उपयोगी चर्चाएं की गईं। डॉ. आयुषी सिंघल ने हाइपोथायरायडिज्म की जटिलताओं को संबोधित किया व नवीनतम निदान दृष्टिकोण और उपचार विकल्पों पर चर्चा की। डॉ. प्रशांत ने हाइपोथायरायडिज्म पर एक जानकारीपूर्ण सत्र दिया, जिसमें इसके कारणों, लक्षणों और प्रबंधन रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित किया गया। डॉ. निरुपमा ने गर्भवती महिलाओं में थायराइड विकारों के उपचार पर बहुमूल्य मार्गदर्शन प्रदान किया, जिसमें मातृ और भ्रूण स्वास्थ्य के महत्व पर जोर दिया गया। डॉ. संगीता ने जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म के लिए नवजात शिशु की जांच की अनिवार्यता पर प्रकाश डालाऔरइसकीप्रारंभिक पहचान और समय पर हस्तक्षेप की आवश्यकता को रेखांकित किया। एसजीपीजीआई के डीन डॉ. शालीन कुमार ने इस पहल को प्रोत्साहन दिया। नर्सिंग कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. राधा के का विशेष उल्लेख किया गया, जिन्होंने नर्सिंग विद्यार्थियोको कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया और कॉलेज परिसर में कार्यक्रम के आयोजन में भी मदद की।
कार्यक्रम में नर्सिंग छात्रों की उत्साहपूर्ण भागीदारी देखी गई, जिन्होंने विशेषज्ञ सत्रों और चर्चाओं में सक्रिय रूप से भाग लिया। इस कार्यक्रम ने थायराइड स्वास्थ्य के बारे में अधिक समझ और जागरूकता को सफलतापूर्वक बढ़ावा दिया, जिससे स्वास्थ्य सेवा शिक्षा और रोगी देखभाल में उत्कृष्टता के लिए एसजीपीजीआई की प्रतिबद्धता को बल मिला।