जनपद आजमगढ़ में मुस्लिम परिवार ने आस्था की मिसाल पेश की है। अपनी बेटी की बीमारी को ठीक करने के लिए दंपती हर काम कर चुके थे। महामंडलेश्वर धाम में शिव सरोवर के बारे में सुनकर उन्होंने यहां दर्शन-पूजन किया। इससे उनकी बेटी को काफी राहत मिल रही है। आस्था और विश्वास की अनूठी मिसाल पेश करते हुए एक मुस्लिम परिवार ने मेंहनगर तहसील क्षेत्र के गौरा गांव स्थित महामंडलेश्वर धाम में शिव सरोवर में डुबकी लगाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक किया। यह घटना क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गई है, जहां लोग इस आस्था की पराकाष्ठा की सराहना कर रहे हैं।
शंभू नगर बाजार निवासी अनवर उर्फ गुड्डू, उनकी पत्नी अफशाना और पुत्री सना बानो ने सोमवार को भगवान शिव के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की। अनवर, जो रोजी-रोटी के लिए परिवार सहित मुंबई में रहते हैं, ने बताया कि उनकी बेटी सना लंबे समय से बीमार थी। अनेक उपचार, झाड़-फूंक और मजारों के चक्कर लगाने के बावजूद कोई लाभ नहीं हुआ। तभी किसी ने उन्हें गौरा गांव के महामंडलेश्वर धाम में शिव सरोवर और शिवलिंग की महत्ता के बारे में बताया। अनवर ने भगवान शिव से मन्नत मांगी कि बेटी के स्वस्थ होने पर वे परिवार सहित दर्शन-पूजन के लिए धाम पहुंचेंगे।
चमत्कारिक रूप से सना की तबीयत में सुधार होने लगा। मन्नत पूरी होने पर अनवर अपने परिवार के साथ धाम पहुंचे और शिव सरोवर में स्नान कर शिवलिंग पर जलाभिषेक किया। इस दौरान उन्होंने हर-हर महादेव के जयकारे भी लगाए।
इस घटना ने स्थानीय लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया, क्योंकि आमतौर पर हिंदू समुदाय के लोग मजारों पर चादर चढ़ाने जाते हैं, लेकिन मुस्लिम समुदाय का मंदिर में इस तरह आस्था व्यक्त करना दुर्लभ माना जा रहा है।
बताते चलें कि महामंडलेश्वर धाम और शिव सरोवर को पुराणों में वर्णित आस्था का प्रमुख केंद्र माना जाता है। मान्यता है कि यहां स्नान करने से चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है और शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से मांगी गई मन्नत पूरी होती है। प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि, कार्तिक पूर्णिमा और सावन मास में यहां मेले का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दूर से भक्त और व्यापारी आते हैं।
मुस्लिम परिवार की इस आस्था ने स्थानीय लोगों के बीच एक नई मिसाल कायम की है। लोगों का कहना है कि यह घटना धर्म और समुदाय की सीमाओं को तोड़कर आस्था की एकता का प्रतीक है। अनवर और उनके परिवार की भक्ति ने न केवल धाम की महिमा को और बढ़ाया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि सच्ची श्रद्धा किसी धर्म की मोहताज नहीं होती।