जी हां आज मंगलयान पर भारत ने अपना परचम लहरा दिया लेकिन शायद बहुत से लोगों को इस बात का पता नहीं होगा कि जहां पर आज इसरो का लॉन्च पद है कभी वहां पर सदियों पुराना चर्च हुआ करता था बता दे कि इसरो को जब लांचिंग पैड की ज़रूरत पड़ी तो विक्रम साराभाई ने जगह की खोज शुरू की, सबसे बेहतर जगह मिली थुंबा जो पृथ्वी के मैग्नेटिक इक्वेटर के बहुत पास है,परन्तु उसमें एक मुश्किल थी-वहाँ एक चर्च था और सदियों पुराना गाँव। चर्च की स्थापना 1544 में हुई थी, फ़्रांसिस ज़ेवियर ने की थी। बाद में समुद्र में बहकर मैरी मैग्डलेन की मूर्ति आ गई तो चर्च मैरी मैग्डलेन चर्च बन गया। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि मैरी मैग्डलेन चर्च आज भी सुरक्षित है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी किताब में लिखा है कि इसरो के विकास के साथ जब लांचिंग पैड की ज़रूरत पड़ी तो विक्रम साराभाई ने उपयुक्त जगह की खोज शुरू की, सबसे बेहतर जगह थी थुंबा जो पृथ्वी के मैग्नेटिक इक्वेटर के बहुत पास है।उसी समय विक्रम साराभाई केरल के बिशप से मिले, उनसे चर्च की जगह विज्ञान के लिए देने का अनुरोध किया। बिशप बड़ी देर ख़ामोश रहे। फिर जवाब नहीं दिया। बोले संडे मास में आना।संडे मास हुई- उसमें विक्रम साराभाई के साथ ए पी जे अबुल कलाम भी गये थे। अपनी किताब इग्नाइटेड माइंड्स में उन्होंने बड़े विस्तार से इस घटना का ज़िक्र किया है।
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुलअब्दुलपीजेतिकलाम साहब ने लिखा है कि बिशप ने चर्च की मास में आये लोगों को पूरी बात बताई। जोड़ा कि एक तरह से विज्ञान और उनका काम एक ही है- मानवता की भलाई।
फिर पूछा क्या चर्च इसरो को दे दें?
कुछ देर खामोशी रही। फिर साझा जवाब आया- आमेन!
इस प्यारी घटना की एक बेहद खूबसूरत प्रतीकात्मकता पर गौर करें- नये नये आज़ाद हुए भारत में विज्ञान की तरक़्क़ी के लिए एक हिंदू और एक मुस्लिम एक ईसाई पादरी से उसका चर्च माँगने गये! और उन्होंने दे दिया!
एक और खूबसूरत बात हुई-चर्च की इमारत को तोड़ा नहीं गया। आज भी स्पेस म्यूजियम वहीं चर्च है। इसरो-ए पर्सनल हिस्ट्री में पूरी जानकारी दी गई है।