पिछले दो वर्षों में पत्रकारों के विधान सभा सचिवालय पास कोरोना की वजह से जारी न हो सका, लेकिन वर्तमान समय में संक्रमण कम हो चुका है, लेकिन पत्रकारिता जगत के कुछ मठाधीश सूचना विभाग के उच्च अधिकारियों के साथ सांठगांठ करके अन्य पत्रकारों के हक पर डाका डालने व उनके अधिकारों का हनन करने का कार्य कर रहे हैं।
जिस तरह से उत्तर प्रदेश विधानसभा को अत्याधुनिक बनाने के साथ-साथ पेपरलेस किया जा रहा है। यह बहुत ही अच्छी बात है।
लेकिन मठाधीशों होकर षड़यंत्र को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि वह दिन दूर नहीं जब विधानसभा पत्रकार लेस नजर आएगा।
यही कारण है कि विधानसभा सत्र को पत्रकार लेस बनाने की मुहिम रंग लेते दिख रही है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा की आपरेशन पेपरलेस की मुहिम के चलते समाचार पत्रों से जुड़े अनेक पत्रकारों को विधानसभा की प्रत्यक्ष रूप से कार्रवाई करने से न सिर्फ रोका गया बल्कि उनको प्रवेश पत्र भी नहीं जारी किया गया है।
20 सालों से जो पत्रकार लगातार विधानसभा कवरेज कर रहे थे उनको पेपरलेस कर दिया गया और अधिकारियों के कमरे में चाय की चुस्कियां लेने वालों पर ऐसी कृपा दृष्टि बरसी कि एक ही संस्थान, एक ही समाचार पत्र से चार चार व्यक्तियों के पास जारी कर दिये जाना पूरी व्यवस्था की पारदर्शिता की नीति को दर्शाता है।
मुख्यमंत्री योगी के लिए संभव नहीं है कि हर स्तर पर अपनी नजर रख सकें लेकिन अधिकारियों द्वारा जिस तरह से दोहरा मापदंड अपनाया जा रहा है वह न सिर्फ निंदनीय है बल्कि मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाया जाना अत्यंत आवश्यक है जिससे पत्रकारिता की साख बची रहे और विधानसभा सत्र की पेपरलेस मुहिम से पेपर यानी समाचार पत्र से जुड़े वास्तविक पत्रकार बाहर ना कर दिया जाए।
विधानसभा के पहले दिन सरकार हर मुद्दे पर तैयार है लेकिन क्या पत्रकार संगठन पहले दिन अपनी बात रखने के लिए तैयार है, आज आवाज़ नही उठी तो कल विधानसभा पत्रकार लेस हो जाएगी।