नई दिल्ली: चीन एक बार फिर से कोरोना की गिरफ्त में है,ओमिक्रॉन के नए सब-वैरिएंट ने चीन में जमकर तबाही मचा दी है और हालात इतने बदतर हो गए हैं कि अस्पतालों में शवों के ढेर के बीच मरीजों का इलाज हो रहा है,साथ ही श्मशान गृहों पर शवों के अंतिम संस्कार के लिए वेटिंग टाइम 30 दिन पार कर चुका है,मेडिकल स्टोर्स पर दवा की कमी से हाहाकार है और लंबी कतारें दिख रही हैं,जबकि अस्पताल में बेड तो छोड़िये,बैठने की जगह पाने के लिए भी मारामारी जारी है।ओमिक्रॉन के सब-वैरिएंट बीएफ.7 ही वह खतरनाक वैरिएंट है,जो चीन में कोविड-19 के बढ़ते मामलों के लिए मुख्यरूप से जिम्मेदार है।
इसके भारत में भी तीन-चार मामले आ चुके हैं।
चीन की स्थिति कितनी खराब हो चुकी है,इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि डब्ल्यूएचओ भी चिंतित हो चुका है और जर्मनी तो अपने नागरिकों को बचाने के लिए बड़ा कदम उठा चुका है।
दरअसल डब्ल्यूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस अदनोम गेब्रेयेसस ने कहा कि संगठन चीन में कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों की खबरों को लेकर बेहद चिंतित है,क्योंकि देश ने अपनी शून्य कोविड नीति को मोटे तौर पर छोड़ दिया है।
जिसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हो रहे हैं।टेड्रोस ने जेनेवा में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी को चीन में कोविड-19 की गंभीरता विशेषकर अस्पतालों और गहन देखभाल इकाइयों में भर्ती मरीजों को लेकर और अधिक जानकारी की आवश्यकता है, ताकि ‘जमीन पर स्थिति का व्यापक जोखिम आकलन किया जा सके,वहीं कोरोना कहर के बीच चीन में रहने वाले जर्मन लोगों की जान बचाने के लिए जर्मनी सरकार ने बड़ा कदम उठाया है।
जर्मनी को भी अब चीनी वैक्सीन पर भरोसा नहीं रह गया है,यही वजह है कि जर्मनी ने BioNTech-Pfizer कोविड वैक्सीन की पहली खेप चीन भेजी है, ताकि चीन में रहने वाले जर्मन लोगों को वैक्सीनेट किया जाए,जर्मन सरकार के प्रवक्ता ने यह जानकारी दी।यहां दिलचस्प बात यह है कि बायो-एनटेक फाइजर पहली विदेशी वैक्सीन है,जो चीन में डिलीवर की गई है।
हालांकि चीन को कितनी वैक्सीन भेजी गई है और कब भेजी गई है,इसका विवरण सामने नहीं आ पाया।
जर्मन सरकार ने के मुताबिक,चीन में रह रहे जर्मन नागरिकों को पहले यह वैक्सीन दी जाएगी,साथ ही चीन में रहने वाले अन्य विदेशियों को भी यह वैक्सीन दी जा सकती है,अगर वे अपनी इच्छा जाहिर करते हैं तो दरअसल बीते दिनों चीन और जर्मनी के बीच इस बात को लेकर सहमति बनी थी कि चीन अपने देश में जर्मन नागरिकों को चीन के बाहर की वैक्सीन देने के लिए राजी होगा। इतना ही नहीं जर्मनी ने इस बात के लिए भी जोर दिया कि विदेशी वैक्सीन चीनी लोगों को भी दिया जाए. फिलहाल, चीन में लगभग 20,000 जर्मन नागरिक हैं। इसके साथ ही चीन को इस बात के लिए भी मंजूरी मिल गई है कि यूरोप में रहने वाले उसके नागरिक चीन की सिनोवैक वैक्सीन ले सकते हैं,जर्मनी ने भी इसी समझौते के तहत चीन में वैक्सीन की पहली खेप भेजी है।
दरअसल,कोरोना वायरस से खिलाफ चीन के पास घरेलू स्तर पर विकसित नौ वैक्सीन हैं,मगर अत्यधिक संक्रामक ओमिक्रॉन वैरिएंट के खिलाफ ये उतने कारगर नहीं हैं,वजह यह है कि फाइजर-बायोएनटेक या मॉडर्ना ने अपने टीके को बूस्टर के लिए अपडेट किया मगर अन्य वैक्सीन की तुलना में चीन ने अपने टीके को अपडेट नहीं किया, जिसकी वजह से चीनी वैक्सीन ओमिक्रॉन के खिलाफ उतना कारगर साबित नहीं हो पा रही हैं,यही वजह है कि चीनी में वैक्सीनेशन के बाद भी इतने बड़े स्तर पर कोरोना ने फिर से तबाही मचा दी है।
बता दें कि चीन में जीरो कोविड पॉलिसी हटने के बाद से कोरोना अपने चरम पर है और लगातार लोगों की जान ले रहा है।चीन में अभी कोरोना से मरने वालों की संख्या आधिकारिक तौर पर 5200 पार कर चुकी है, जबकि अनुमान है कि चीन की 60 फीसदी से अधिक आबादी इसकी चपेट में आ सकती है और 20 लाख से अधिक लोगों की मौत हो सकती है. चीन 2019 की तरह एक बार फिर कोरोना के आंकड़ों को छिपा रहा है।यही वजह है कि उसने अस्पतालों से लेकर श्मशान गृहों तक पुलिसफोर्स और सुरक्षाकर्मियों को तैनात कर दिया है, रिपोर्टिंग के लिए मीडिया को लगातार रोक रहा है,इतना ही नहीं,कोरोना से होने वाली मौतों की परिभाषा को भी उसने बदल दिया है,फिलहाल, चीन में कोरोना ने तांडव मचा रखा है।