लखनऊ। संविधान दिवस पर पसमांदा मुस्लिम समाज कार्यालय में संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें अपने विचार रखते हुए वसीम राईनी प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि कोई भी देश बिना संविधान के नहीं चलता। देश का शासन और सरकार कैसे चलेगी? सरकार के विभिन्न अंगों की रूपरेखा कैसी होगी? किस पद की नियुक्ति कैसे होगी और उसके क्या कार्य होंगे? देश के नागरिकों के क्या अधिकार और कर्तव्य होंगे एवं इनकी रक्षा कैसे होगी? कानून क्या होगा? एक देश को चलाने के लिए यह सब बातें संविधान में ही निहित होती हैं।
200सालों की ग़ुलामी के बाद जब भारत अंग्रेज़ों के चूंगल से आज़ाद हुआ तब उसके पास अपना संविधान नहीं था। ऐसे में सबसे पहले संविधान बनाने की चुनौती थी। इसके लिए 1946 में एक संविधान सभा का गठन किया गया। जवाहर लाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. बाबा साहब अम्बेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे।संविधान तैयार करने में 2वर्ष 11 माह 18 दिन लगे थे। यह 26,नवम्बर 1949को पूरा और इसे अपनाया गया।
आज का दिन हमें इसी महत्वपूर्ण दिन की याद दिलाता है।26, नवम्बर को संविधान दिवस के साथ साथ राष्ट्रीय कानून दिवस भी मनाया जाता है। संविधान अपनाये जाने के कुछ दिनों बाद 26, जनवरी,1950 को संविधान लागु हुआ। इस दिन को देश में गणतंत्र दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
यह संविधान ही है जो हमें एक आज़ाद देश का आज़ाद नागरिक की भावना का अहसास कराता है। जहाँ संविधान के दिए मौलिक अधिकार हमारी ढाल बनकर हमें हमारा हक़ दिलाते हैं, वहीं इसमें दिए मौलिक कर्तब्य हमें हमारी ज़िम्मेदारियां भी याद दिलाते हैं।
आरिश राईनी प्रदेश प्रवक्ता ने कहा कि संविधान लागू हूए 72 वर्ष हो गये पसमांदा मुसलमानो के हालात बद से बदतर हैं, संविधान बनाते समय भी हमको छला गया संविधान सभा में भी कोई दलित मुस्लिम नहीं था। धारा 341/3 में भी धर्म परिवर्तन करने वाले दलित मुसलमानो को यह कहकर आरक्षण से वंचित किया गया कि इस्लाम में ज़ात -पात और छुआ- छूत नहीं है मैं यह बताना चाहता हूँ कि इस्लाम में ज़ात -पात नहीं है लेकिन भारत के मुसलमानो में ज़ात व्यवस्था की जड़ें बहुत मज़बूती से फैली हैं।
इस अवसर पर ऐजाज़ अहमद राईनी, हाजी शब्बन मंसूरी,हारुनूर्रशीद सिद्दीकी,मोहम्मद कलीम मंसूरी इलियास मंसूरी,खुर्शीद आलम सलमानी,मण्डल अध्यक्ष,ज़हीर कुरैसी, मोहम्मद फ़ाज़िल अंसारी,सैफ अली इदरीसी वाजिद सलमानी के अलावा काफ़ी लोगों ने अपने विचार प्रस्तुत किये।