लखनऊ। सीओपीडी यानी क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज फेफड़ों से जुड़ी एक बेहद गंभीर और जानलेवा बीमारी है। अक्सर लोग अस्थमा तथा सीओपीडी को जोड़कर देखते हैं। हांलांकि ये दोनों बीमारियों सांसों से जरूरी जुड़ी हुई हैं, लेकिन इन दोनों में काफी अंतर है। यह कहना है राजेंद्र प्रसाद केजीएमयू पल्मोनरी एवं रेसपरेटरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. आरएएस कुशवाहा का। विष्व सीओपीडी दिवस पर आयोजित प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए प्रो. आरएएस कुशवाहा ने बताया कि विश्व सीओपीडी दिवस हर वर्ष नवंबर के तीसरे बुधवार को मनाया जाता है। इस साल यह दिन 19 नवंबर को है।
प्रो. कुशवाहा ने बताया कि इसका उद्देश्य क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। सीओपीडी श्वसन और फेफड़ों से जुड़ी एक बेहद गंभीर बीमारी है। सीओपीडी एक प्रगतिशील बीमारी है, जिसका अर्थ है कि समय के साथ फेफड़ों की कार्यक्षमता बिगड़ती जाती है, और यह नुकसान अक्सर स्थायी होता है। यह मुख्य रूप से धूम्रपान या प्रदूषण के कारण होता है। उन्होंने बताया कि सिगरेट या तंबाकू ही नहीं बल्कि आजकल प्रचलित हुक्काबार में ई-सिगरेट तथा शीशा भी इस जानलेवा बीमारी का प्रमुख कारण बनता जा रहा है। शादियों एवं पार्टियों में बड़े ही नहीं बल्कि बच्चे भी इसका सेवलन करते हुए देखे जा सकते हैं जो हमारे फेफड़ों के लिए हर प्रकार से हानिकारक एवं जानलेवा है। वहीं अस्थमा सांस की नली में अस्थायी सूजन के कारण होता है, जो एलर्जी या ट्रिगर्स के संपर्क में आने पर होता है। अस्थमा का सही इलाज करने पर फेफड़ों की कार्यक्षमता आमतौर पर सामान्य हो जाती है। ऐसे में इन दोनों के बीच इस अंतर को समझना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि गलत निदान से गलत उपचार हो सकता है, जो सीओपीडी के मरीजों के लिए घातक साबित हो सकता है। दोनों बीमारियों की जड़ें, गंभीरता और उपचार के दृष्टिकोण में मौलिक अंतर है, जिसकी जानकारी जीवन बचाने और फेफड़ों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए अनिवार्य है।
तेजी से बड़ रहा है विश्व में सीओपीडी मृत्युदर, जागरूकता से रोकथाम संभव- डाॅ वेद प्रकाश
केजीएमयू पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर मेडिसिन के प्रमुख प्रो. वेद प्रकाश ने बताया कि सीओपीडी का मुख्य कारण आमतौर पर लंबे समय तक धूम्रपान या प्रदूषण के संपर्क में रहना होता है, और यह अक्सर 40 साल की उम्र के बाद शुरू होता है।
प्रो. वेद प्रकाश ने बताया कि पूरे विश्व में सीओपीडी से होने वाली मृत्युदर में काफी बढ़ोतरी हुई है। इसका एक प्रमुख कारण न सिर्फ जागरूकता की कमी है बल्कि छोटी उम्र में बढ़ती जा रही धुम्रपान की लत है। उन्होंने बताया कि एक आंकड़े के अनुसार वर्ष 2025 सीओपीडी से ग्रसित लोगों की संख्या 50 करोड़ से अधिक आंकी गई है जबकि सही समय पर इलाज न कराया गया तो यह आंकड़ा 2050 तक 65 करोड़ तक जा सकता है।
प्रो. वेद प्रकाश ने बताया कि हमारे देश भारत में धुम्रपान ही नहीं बढ़ता प्रदूषण भी सीओपीडी का एक बड़ा कारण है। सरकार ने कानून तो बनाये हैं लेकिन उनको सख्ती से लागू करने की भी आवश्यकता है। स्कूली छात्र एवं छात्राओं में भी धुम्रपान, शराब का सेवन तथा हुक्काबार में ई-सिगरेट का चलन स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है जो जानलेवा है। इस पर प्रतिबंध लगाने एवं जागरूकता बढ़ाने के आवश्यकता है। वहीं डॉ सचिन कुमार एवं डॉ संदीप गुप्ता ने भी इस पर प्रकाश डालते हुए बताया कि सीओपीडी में फेफड़ों की कार्यक्षमता का नुकसान स्थायी होता है। यह वायुमार्ग को संकुचित कर देता है और फेफड़ों के वायुकोशों को नष्ट कर देता है।
उपचार और दवाएं
सीओपीडी का उपचार मुख्य रूप से बीमारी की प्रगति को धीमा करने पर केंद्रित होता है, जिसके लिए लंबे समय तक काम करने वाले ब्रोंकोडायलेटर्स का उपयोग किया जाता है। अस्थमा के उपचार में आमतौर पर इनहेल्ड स्टेरॉयड और शॉर्ट-एक्टिंग ब्रोंकोडायलेटर्स (रिलीवर) शामिल होते हैं, जिनका उपयोग ट्रिगर होने पर किया जाता है।
सीओपीडी समय के साथ धीरे-धीरे बिगड़ती जाती है, खासकर यदि रोगी धूम्रपान करता है या लगातार वायु प्रदूशण में रहता है। मरीज को लगातार सांस फूलने की शिकायत रहती है। क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) दुनिया भर में मौत का चौथा प्रमुख कारण है, जिसके कारण 2021 में 3.5 मिलियन मौतें हुईं, जो वैश्विक स्तर पर होने वाली सभी मौतों का लगभग 5 प्रतिशत है। 70 वर्ष से कम आयु के लोगों में सीओपीडी से होने वाली लगभग 90 प्रतिशत मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) में होती हैं। सीओपीडी दुनिया भर में खराब स्वास्थ्य का आठवां प्रमुख कारण है।



