हृदयघात से मृत्युदर प्रतिशत 10 से घटकर दो प्रतिशत, देशभर से आते हैं मरीज- डॉ.अग्रवाल

Health उत्तर प्रदेश

आयुष्मान भारत से मध्यम एवं गरीब मरीजों को मिलती है काफी सुविधा

लखनऊ। जब हम सर्जरी के बारे में सोचते हैं, तो हम अक्सर डॉक्टरों को ऑपरेशन थियेटर में जीवन रक्षक प्रक्रियाएं करते हुए कल्पना करते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हृदय, फेफड़े और रक्त वाहिकाओं की जटिल सर्जरी कौन करता है? यहीं पर कार्डियोवैस्कुलर और थोरेसिक सर्जरी (सीवीटीएस) की भूमिका आती है।

सीवीटीएस चिकित्सा का एक अत्यंत विशिष्ट क्षेत्र है जो हृदय शल्य चिकित्सा (कार्डियक), फेफड़े और छाती की शल्य चिकित्सा (थोरैसिक), और रक्त वाहिका शल्य चिकित्सा (वैस्कुलर) से संबंधित है। भारत में, जहां हृदय रोग मृत्यु का एक प्रमुख कारण है साथ ही फेफड़ों की बीमारियां बढ़ रही हैं, सीवीटीएस जीवन बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शनिवार को संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGI) में सीवीटीएसम के 38वें स्थापना दिवस मनाया गया जहां देश भर से कार्डियक चिकित्सकों ने अपने विचार रखे। इस दौरान आयोजित प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए एसजीपीजीआई सीवीटीएस के विभागाध्यक्ष प्रो. एस के अग्रवाल ने बताया कि जल्द ही संस्थान में हार्ट ट्रांसप्लांट की शुरुआत होने जा रही है। इसकी तैयारी कार्डियोवैस्कुलर एंड थोरेसिक सर्जरी (CVTS) विभाग ने पूरी कर ली हैं। उन्होंने बताया कि हार्ट ट्रांसप्लांट जब भी होगा इसके लिए हार्ट दूसरे प्रदेश से ही लाया जाएगा क्योंकि उत्तर प्रदेश में उपयुक्त दाता नहीं मिलने के कारण अब तक ट्रांसप्लांट का काम नहीं हो सका है।

पत्रकारों से बातचीत में डॉ. अग्रवाल ने कहा, हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण इंसान का जीवन है जो बेहद कीमती है। उन्होंने बताया कि एक बड़ी समस्या इसमें आने वाले खर्च को लेकर भी है लेकिन आयुष्मान भारत की योजना से काफी आसानी हुई है। अब मध्यम वर्ग ही नहीं गरीब भी इसका लाभ उठाकर सर्जरी करा सकता है। हृदयघात से मृत्युदर प्रतिशत 10 से घटकर दो प्रतिशत रह गई है। एसजीपीजीआई में देशभर से बड़ी संख्या में इलाज कराने मरीज आते हैं।

प्रो. एस के अग्रवाल ने बताया कि हार्ट ट्रांसप्लांट तब जरूरी हो जाता है, जब दिल की बीमारी इतनी गंभीर हो जाए कि दवाएं या अन्य इलाज प्रभावी न रहें। उन्होंने बताया कि डॉ. अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि हार्ट ट्रांसप्लांट, लिवर और किडनी ट्रांसप्लांट से अलग है। लिवर और किडनी के लिए जीवित व्यक्ति अंगदान कर सकता है, लेकिन हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए केवल ब्रेन डेड या कैडेवरिक डोनर का हार्ट ही उपयोग किया जा सकता है।

रोबोटिक सर्जरी बेहद कारगर, एआई का महत्व बढ़ेगा

प्रो. एसके अग्रवाल ने बताया कि परंपरागत तरीके से सर्जरी करने में और अब रोबोटिक सर्जरी करने में अधिक असानी है। इससे मरीजों को न सिर्फ तकलीफ कम होती है बल्कि हम चिकित्सकों को भी इसका लाभ मिलता है। रोबोटिक सर्जरी से हम एक कंसोल का इस्तेमाल कर मरीज के भीतर सर्जरी करने वाले अंगों की एक्यूरेसी को और बेहतर समझ लेते हैं। उन्होंने बताया कि अब एआई का चलन बढ़ने लगा है इससे युवा चिकित्सकों को सर्जरी करने की हर बारिकियों की संपूर्ण जानकारी मिल सकेगी जिससे मरीजों को अधिक लाभ मिल सकेगा। यदि एआई को हम हेल्पिंग टूल की तरह इस्तेमाल करें हमें काफी मदद मिल सकती है।

प्रो. एस के अग्रवाल ने बताया है कि एसजीपीजीआई में हार्ट ट्रांसप्लांट की लागत अन्य संस्थानों की तुलना में काफी कम होगी। मात्र 5 से 10 लाख रुपये में यह सुविधा उपलब्ध होगी। एसजीपीजीआई के डॉक्टरों का यह कदम उत्तर प्रदेश में हृदय रोगियों के लिए नई उम्मीद लेकर आया है।

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