राजधानी लखनऊ के ग्राम इटौजा क्षेत्र में बने नीलांश वाटर पार्क को लेकर विगत कई वर्षों से लगातार वहां के स्थानीय पत्रकार दीपक शुक्ला उर्फ तिरंगा के द्वारा यह आरोप लगाया गया कि नीलांश वाटर पार्क ने जबरन किसानों की जमीन को हड़प लिया गया है,किसान भुखमरी की कगार पर आ गए हैं। इतना ही नहीं कई बार कुछ गिने-चुने लोगों की आड़ में धरना प्रदर्शन की भी खबरें प्रकाशित की गई।
इसके साथ ही लगातार तिरंगा के द्वारा नीलांश वाटर पार्क के डायरेक्टर को अभद्र भाषाओं में मैसेज भेजे गए,जिनका जवाब देना नीलांश वाटर पार्क के डायरेक्टर ने उचित नहीं समझा,क्योंकि जिस तरह की भाषा का प्रयोग तिरंगा के द्वारा किया गया,उस तरह की भाषा का प्रयोग कोई भी सम्मानित पत्रकार नहीं कर सकता है। इतना ही नहीं तिरंगा के द्वारा है यह भी आरोप लगाया गया कि इन सब मामलों में एक किसान की भी मृत्यु हो गई, लेकिन जब इसकी गहन जांच पड़ताल हुई,तो पता चला कि मृतक किसान एवं उसके परिवार के द्वारा पूर्व में ही जमीन को नीलांश को बेची जा चुकी थी। किसानों द्वारा नीलांश को जमीन बेचने के बाद तिरंगा ने फर्जीवाड़ा के माध्यम से पूर्व बेची गई जमीन की फर्जी खतौनी तैयार करके, कई बैंकों से लोन दिलवाया और उसका बंटवारा कर लिया।जिसकी बाकायदा थाना माल में एफआईआर दर्ज कराई जा चुकी है। तिरंगा के द्वारा यह भी आरोप लगाया कि कुछ किसानों की जमीन को जबरन कब्जा कर लिया गया है। जबकि यह बातें सरासर गलत साबित हुई। नीलांश वाटर पार्क के द्वारा किसी भी प्रकार की किसी किसान की जमीन को कब्जा नहीं किया गया। तिरंगा के द्वारा साजिश के तहत कुछ किसानों के नाम से नीलांश के विरुद्ध छह अलग-अलग मुकदमे भी दर्ज कराए गए,लेकिन सभी मुकदमों में किसान किसी भी तारीख पर अदालत में उपस्थित नहीं रहे, जिसके परिणाम स्वरुप अदालत ने मुकदमा खारिज कर दिया।
जिससे यह साबित होता है कि तिरंगा के द्वारा लगाए गए सारे आरोप सोची समझी साजिश के तहत की गई थी। इतना ही नहीं तिरंगा के द्वारा यह भी आरोप लगाया गया की नीलांश ने सैकड़ो बीघा सरकारी जमीन को कब्जा कर लिया,जबकि पूरे ग्राम समाज में सैकड़ो बीघा जमीन सरकारी जमीन नहीं है,फिर भी नीलांश में पड़ने वाली ग्राम समाज की जमीन को नवीन परती या बंजर भूमि को नियमानुसार कई वर्ष पूर्व ही पट्टा कराया जा चुका है।
नीलांश में कोई चकरोड चारागाह,खलिहान की जमीन मौजूद नहीं है। एक तालाब जिसका पट्टा सरकार के द्वारा ग्राम सभा के व्यक्ति को किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त कोई भी सरकारी भूमि व तालाब नीलांश में मौजूद नहीं है।जो जमीन खाली है,उस पर सरकारी बोर्ड लगा हुआ है,जिस जमीन पर मलिहाबाद वह बख्शी तालाब की ओवरलैपिंग की गई है।
दीपक शुक्ला उर्फ तिरंगा जब चारों तरफ से हार मान गया, तो कुछ क्षेत्रीय सम्मानित लोगों के माध्यम से नीलांश से बात करने की इच्छा जाहिर की और अपनी कुछ शर्ते रखी।
जिनमें मुख्य रूप से एक करोड़ रुपए की नगद धनराशि एवं प्रतिमाह एक लाख रुपये के रकम,इसके साथ ही एक इनोवा कार एवं बीकेटी विधानसभा क्षेत्र से विधायकी का टिकट दिलाए जाने एवं चार सरकारी गनर उपलब्ध कराये जाने की मांग की गई, जिस पर निलांश ग्रुप के द्वारा वसूली के उद्देश्य से की गई मांगों को इनकार कर दिया गया। उन्होंने साफ मना कर दिया कि उनके बस की बात नहीं कि वो विधानसभा का टिकट दिला सकें।
इसके बाद तिरंगा ने एक गिरोह बनाकर तिरंगा नीलेश के प्रोजेक्ट के बाहर ग्राम सभा बदैया की जमीन खसरा संख्या 830,833,
834,925,932,934, 970,965,270,490 एवं ग्राम सभा टिकरीकलां की जमीन खसरा संख्या 130,131,230,231,232,234,189,184,172,174,194,192 के बीसियों बिघा जमीन कब्जा कर ली है। अब हालत यह है कि जब भी उक्त जमीन को खाली करने के लिए नीलांश द्वारा कोई प्रयास किया जाता है, तो तिरंगा और उसके गिरोह के लोग तुरंत धरना प्रदर्शन एवं सोशल मीडिया में विरोध प्रदर्शन एवं फर्जी आरोप लगाना शुरू कर देते हैं।
इसके अलावा पेड़ों की नर्सरी खोलना के लिए, खाद की दुकान खोलने के लिए कई बार पैसों की मांग की गई। जिसमें निलांश ग्रुप द्वारा सभी बातों को अस्वीकार कर दिया गया। तिरंगा ने गरीब किसानों को भी नहीं छोड़ा,उन्हें लालच देकर उनके लाखों रुपए अभी तक ठग चुका है, अबतक कई गरीब किसान इसकी ठगी का शिकार हो चुके हैं। जिसके बाद उन किसानों ने तिरंगा का साथ छोड़ दिया है।तिरंगा का कहना है कि मेरी पहचान नीलांश के विरोध से है। उसी से इसकी पहचान और टीआरपी है वह निलांश ग्रुप का तब तक विरोध करेगा जब तक उसकी पहचान नहीं बन जाती, उसकी मंशा है कि वह सांसद या विधायक बनना चाहता है। जिसके लिए बाकायदा उसने प्रेस कांफ्रेंस करके इस बात की घोषणा की।
बता दें कि तिरंगा के परिवार में कुल 6/7 लोग हैं जिसमें पिता पेंशन पाते हैं,इसके अलावा दो-तीन बच्चे हैं कुछ खेती-बाड़ी है। इस महंगाई के समय में पूरे परिवार का खर्च चलाना मुश्किल है। इसलिए तिरंगा मेहनत मजदूरी करने की बजाय गरीब किसानों और अन्य लोगों को लालच देकर ठगी करता है। चंदा मांगता है और गिरोह बनाकर सम्मानित लोगों को किसी ने किसी प्रकार से मानसिक रूप से प्रताड़ित करके धन उगाही करने की कोशिश करता है। ऐसा ही निलांश ग्रुप के साथ भी किया,जिसमें पूरी तरह दीपक शुक्ला उर्फ तिरंगा असफल रहा।
अब देखने वाली बात यह होगी कि ऐसे ठग के ऊपर सरकार क्या कार्यवाही करती है और ईमानदार सम्मानित पत्रकार बंधु ऐसे फर्जी पत्रकार के खिलाफ क्या आवाज उठाते हैं।