रेडियोलॉजिस्ट द्वारा दुर्लभ दोहरी जीवन रक्षक प्रक्रियाएं सफलतापूर्वक संपन्न
लखनऊ। एक दुर्लभ और चुनौतीपूर्ण मामले में, एसजीपीजीआई के इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट की एक टीम ने दोनों पैरों में एक्यूट लिम्ब इस्केमिया(एएलआई) से पीड़ित एक महिला का सफलतापूर्वक इलाज किया, लेकिन प्रारंभिक प्रक्रिया के तुरंत बाद उसे एक बड़ा स्ट्रोक होने पर तत्काल मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी की गई।
पीजीआई में हुई इस दुर्लभ प्रक्रिया से जुड़े डॉक्टर ने बताया कि एक युवा महिला, जो रूमेटिक हृदय रोग (आरएचडी) से पीड़ित थी, को एक्यूट लिम्ब इस्केमिया के कारण दोनों पैरों में गंभीर दर्द और ठंड लगने के साथ अस्पताल लाया गया था। यह एक जानलेवा स्थिति थी, जो हृदय में थक्कों के पलायन और पैर की धमनियों को अवरुद्ध करने के कारण होती है। ऐसे में यदि मरीज का तुरंत इलाज न किया जाए तो पैर काटने की नौबत आ सकती है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, हमारी टीम ने उसके निचले अंगों में रक्त प्रवाह को बहाल करने के लिए एक आपातकालीन एंडोवैस्कुलर प्रक्रिया करने का फैसला किया।इंटरवेंशन रेडियोलॉजिस्ट डॉ. तान्या यादव तथा डॉ. अविनाश डी गौतम और पीडीसीसी के छात्रो की टीम ने परक्यूटेनियस कैथेटर-निर्देशित थ्रोम्बोलिसिस और थ्रोम्बेक्टोमी का प्रदर्शन किया, जो थक्का हटाने और रक्त प्रवाह को बहाल करने के लिए एक मिनिमल इनवेसिव तरीका है। समय पर रिपरफ्यूजन के बाद, रोगी के पैरों को विच्छेदन से बचा लिया गया। बाद में, उसे अचानक न्यूरोलॉजिकल समस्याए होने लगीं, जिसमें दाएं तरफ की कमज़ोरी और बोलने में कठिनाई शामिल थी, जो स्ट्रोक का संकेत था। उसके हृदय कक्ष में थक्के अब बाईं ओर की प्रमुख मस्तिष्क धमनियों में चले गए थे, जिससे उसके शरीर का दाहिना हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया तथा बोलने में असमर्थ हो गयी। तत्काल हुई मस्तिष्क की एमआरआई से पता चला कि बाएं मध्य मस्तिष्क धमनी (एमसीए) में तीव्र अवरोध है।
स्ट्रोक प्रबंधन की समय-संवेदनशील प्रकृति को पहचानते हुए, तुरंत मस्तिष्क से थक्का हटाने के लिए यांत्रिक थ्रोम्बेक्टोमी किया गया। कमर में एक छोटे से निशान के माध्यम से, एक माइक्रोकैथेटर और माइक्रोवायर का उपयोग करके थक्के को पार किया गया, तथा एस्पिरेशन थ्रोम्बेक्टोमी की गई, जिससे थक्के को पूरी तरह से हटाना सुनिश्चित हुआ। थ्रोम्बेक्टोमी के बाद के एंजियोग्राम ने बाएं एमसीए में लगभग पूर्ण रीकैनलाइज़ेशन दिखाया, जिससे मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति बहाल हो गई। थ्रोम्बेक्टोमी के बाद, रोगी मे अगले कुछ घंटों में न्यूरोलॉजिकल सुधार दिखाई देने लगे। उसके अंगों का संचार स्थिर रहा और उसके स्ट्रोक के लक्षण धीरे-धीरे ठीक हो गए। धीरे धीरे वह अपनी दैनिक गतिविधियां और सामान्य बातचीत करने लगी।
एसजीपीजीआई के कार्डियोलॉजी विभाग के सहायक प्रो. डॉ अंकित साहू के अनुसार, यह मामला संवहनी आपात स्थितियों के इलाज की जटिलता को उजागर करता है, विशेष रूप से रुमेटिक हृदय रोग जैसी अंतर्निहित हृदय स्थितियों वाले रोगियों में। एसजीपीजीआई के वरिष्ठ इंटरवेंशन रेडियोलॉजिस्ट, प्रो. रजनीकांत आर यादव ने बताया ‘हम न्यूनतम इनवेसिव एंडोवैस्कुलर तकनीकों के माध्यम से तीव्र अंग इस्केमिया और स्ट्रोक दोनों का सफलतापूर्वक प्रबंधन करने में सक्षम थे, जिससे विच्छेदन और दीर्घकालिक विकलांगता दोनों को रोका जा सका।’ इसे कार्डियोलॉजी टीम (डॉ अंकित साहू, डॉ प्रांजल और टीम के अन्य सदस्य) और एनेस्थीसिया टीम (डॉ प्रो. देवेंद्र गुप्ता और डॉ तपस कुमार सिंह और एनेस्थीसिया रेजिडेंट्स) के सहयोग के बिना हासिल करना मुमकिन नहीं था। रेडियोडायग्नोसिस विभाग की प्रमुख डॉ. प्रो. अर्चना गुप्ता ने इस बात पर जोर देते हुए बताया कि ‘यह असाधारण मामला बहु-प्रणाली आपात स्थितियों के प्रबंधन में इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी की बढ़ती भूमिका का प्रमाण है और अत्याधुनिक चिकित्सा देखभाल के केंद्र के रूप में हमारे विभाग और संस्थान की प्रतिष्ठा को मजबूत करता है।’