रावण के दस सिर 10 बुराइयों के प्रतीक हैं

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भारत त्योहारों का देश है जहां पर प्रत्येक मास कोई न कोई त्यौहार समाज को जोड़ने के लौकिक और अलौकिक कारणों से मनाया जाता है। हमारे प्रत्येक त्यौहार को मनाने का कोई न कोई कारण अवश्य होता है और उन कारणों को याद दिलाने के लिए ही यह त्यौहार प्रत्येक वर्ष हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं। जहां सभी कारणों में सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक कारण होते हैं; वहीं इसके कुछ महत्वपूर्ण सांकेतिक अर्थ भी होते हैं ।जिनको समझाना और समझना हम समस्त सनातन समाज के सुधिजनों की नैतिक जिम्मेदारी होती है और तभी वास्तव में हमारे त्यौहारों को मनाने की सार्थकता होती है।

भारत में 12 मास में 500 से अधिक छोटे-बड़े और अनेक प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं।इन सभी त्योहारों को संगीत ,नृत्य ,भजन और धार्मिक अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है। इन समस्त प्रकार के त्योहारों में दशहरा अर्थात नवरात्रि का त्यौहार एक प्रमुख सांकेतिक त्यौहार है। यह सर्वविदित है कि भगवान श्री राम रावण का वध करने के पश्चात अयोध्या में वापस आते हैं। अधर्म पर धर्म की विजय के कारण ही हम इस दशहरा को विजयादशमी के रूप में मानते हैं। इस त्यौहार को मानने के अलौकिक कारण को समझने के लिए सर्वप्रथम अवतार शब्द को समझना आवश्यक होगा ।
अवतार शब्द अव उपसर्ग और तृ धातु से घञ् प्रत्यय करके बना है जिसका सामान्य और विशेष अर्थ होता है उदय, आरंभ अथवा विषय विशेष का हृदय में अवतरण । अर्थात प्रत्येक कालखंड में जब-जब विभिन्न प्रकार की बुराइयों को स्थान प्राप्त होता है तब तब परम तत्व का हृदय में अवतरण होता है । और रावण शब्द का अर्थ होता है रावयति भीषयति सर्वान् अर्थात जो सबको रुलाने वाला हो, सबको डराने वाला हो ऐसे तत्व को रावण कहते हैं अथवा दशानन अर्थात 10 मुखो वाला अथवा दश सिर वाला। रावण शब्द का एक अन्य विशेष अर्थ होता है; ऐसा व्यक्ति जो अपने इंद्रियों को वश में ना कर सकने वाला हो, जिस कारण से वह हमेशा परेशान रहने वाला होता है और दूसरों को कष्ट देने वाला होता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति जब अपने इंद्रियों को वश में करने में असमर्थ होता है तब वह दशानन हो जाता है अर्थात अविद्या ,अस्मिता, राग ,द्वेष , अभिनिवेश ,काम, क्रोध मद, लोभ और मोह से युक्त हो जाता है। जब हम दशहरा के दसों दिन इन दसों बुराइयों के दमन हेतु उपवास अथवा व्रत करते हैं तब अंत में इन बुराइयों का दमन अथवा नाश हो जाता है । तब हृदय में राम रूप परम तत्व का अवतरण होता है ; फलस्वरूप जीवन में सर्वत्र अथवा समाज में सर्वत्र उल्लास होता है,सर्वोच्च प्रसन्नता होती है ,सर्वत्र प्रकाश होता है और तब मन रूप अयोध्या में परम तत्व अर्थात मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का आगमन होता है । इस प्रकार हम अपने अंदर के विद्या , अस्मिता आदि दसों बुराइयों का दमन करते हैं तदनंतर विजयदशमी का आगमन होता है अर्थात् अधर्म पर धर्म के विजय का उत्सव आता है। और हम सभी विभिन्न प्रकार से आनंदित होते हैं अर्थात् परमानन्द की प्राप्ति होती है।जीवित शरीर के साथ सर्वदा के लिए मोक्ष प्राप्ति अर्थात् सब प्रकार के दुःखों से निवृत्ति इन दसों बुराइयों के शमन से हो जाता है। यही इस पावन दशहरे का मूल ध्येय है।

लेखक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया राजकीय महाविद्यालय मुफ्तीगंज जौनपुर के शोध छात्र

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