लखनऊ
उत्तर प्रदेश योगी सरकार यूपी को भ्रष्टाचार मुक्त करने की भरपूर कोशिश कर रही है। लेकिन कुछ ऐसे भी अधिकारी है जो भ्रष्टाचार को समाप्त न करने की कसम खा रखी है।
आपको बता दें कि एलडीए के द्वारा वैध और अवैध बिल्डिंगों का खेल वर्षों से चला आ रहा है,जबकि वास्तविकता यह है कि एलडीए के द्वारा बनाए गए मानक वर्षों पुराने हैं बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए विकल्प के रूप में बहुमंजिला इमारतें ही बची है,क्योंकि जिस तरह से निजी कंपनियां जमीनों पर प्लाटिंग करके लगातार उपजाऊ जमीन को कालोनियों में तब्दील कर रहे हैं,वह दिन दूर नहीं जब लोगों को अनाज उगाने के लिए जमीन नसीब नहीं होगी।ऐसी स्थिति में लोगों के आवास की समस्या को दूर करने का मात्र एक विकल्प है बहुमंजिली इमारतें।
हालांकि राजधानी लखनऊ भारत के स्मार्ट सिटी शहरों में से एक है लेकिन इसके बावजूद लखनऊ विकास प्राधिकरण अपने वर्षों पुरानी नियमों को जनता पर जबरन थोपता चला आ रहा है।जबकि एलडीए पूर्व उपाध्यक्ष डी एन द्विवेदी के शासनकाल में 2020 योजना को लाकर वर्तमान समय की परिस्थितियों को देखते हुए अच्छा विकल्प था।जिसमें कम से कम भूतल के साथ चार मंजिल तक के भवनों को आसानी से मानचित्र की स्वीकृति मिल सकती थी। लेकिन एलडीए के रिश्वतखोर अधिकारियों ने इस योजना को लागू होने से पहले ही ठंडे बस्ते में डाल दिया। जिसका ठीकरा दूसरों के ऊपर फोड़ दिया।
जबकि हकीकत यह है कि अगर प्राधिकरण नई योजना को लागू कर देता, तो एलडीए विभाग से भ्रष्टाचार कुछ हद तक समाप्त हो सकता था। लेकिन के अधिकारी यह नहीं चाहते कि कोई नई योजना लागू हो।
क्योंकि पुरानी योजनाओं के आधार पर वैध और अवैध का खेल बड़ी ही आसानी के साथ खेला जाता है, जिसकी आड़ में जमकर रिश्वतखोरी का बाजार चलता है। सरकार को कुछ चिन्हित भवनों को ध्वस्त करके एलडीए अपनी खुद की पीठ थपथपा कर सरकार से शाबाशी लेने का काम कर रहा है।
हालांकि इस अवैध अवैध खेल का फायदा कुछ मीडिया वाले भी उठाते हैं,जिनमें रिश्वतखोर अधिकारियों को बरगला कर धमका कर एवं बिल्डरों से भी धमका कर मोटी रकम वसूलते हैं।
जिससे उनकी काली कमाई बरकरार रहती है,
ऐसे में यह बहुत ही चिंता का विषय है यह एक आम आदमी अपने खून पसीने की कमाई से अपने परिवार अपने बच्चों के रहने के लिए छत तो ले लेता है,लेकिन वैध अवैध है के मकड़जाल में फंसकर रह जाता है।
जिसके जिम्मेदार केवल एलडीए के उच्च अधिकारी है,क्योंकि वह हमेशा दूसरों के दिखाए रास्ते पर चलते हैं। ये अधिकारी अपना विवेक इस्तेमाल नहीं करते बड़े ही दुर्भाग्य की बात है। वर्तमान सामाजिक स्थिति को देखने की कोशिश ही नहीं करते हैं।
जबकि राजधानी में तमाम ऐसे भी लोग हैं,जो किसी समय में अच्छे रसूखदार लोगों की श्रेणी में आते थे। लेकिन बदलते समय के साथ लोगों की आर्थिक स्थिति खराब होती चली गई। अब हालात ऐसे हो चुके हैं कि लोगों के पास अपने पुराने जर्जर मकानों की मरम्मत भी करवा पा रहे हैं।
ऐसी स्थिति में इस तरह के लोग अधिकांशतया छोटे-मोटे बिल्डरों के साथ मिलकर चार पांच मंजिला इमारत बनाकर उसमे स्वयं 1/2 फ्लैट लेकर अपने परिवार का गुजर-बसर करते हैं! इसके साथ ही साथ बिल्डरों से उनको कुछ आर्थिक मदद भी मिल जाती है।जिससे उनकी बेरोजगारी और भुखमरी तो दूर होती ही है साथ ही साथ लोगों को आवास की समस्या से भी निजात मिलता है। लेकिन ऐसे भवनों को एलडीए द्वारा मानचित्र की स्वीकृति नहीं दी जाती है। पुराने मानकों आधार बनाकर ऐसे भवन को एलडीए द्वारा अवैध करार कर दिया जाता है।
जोकि वर्तमान समय में बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए किसी भी सूरत में न्याय संगत नहीं है।
सरकार अगर एलडीए से भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहती है,तो सर्वप्रथम एलडीए के पुराने मानकों को पूर्ण रूप से समाप्त कर वर्तमान समय की परिस्थिति को देखते हुए मानचित्र के नए मानक को लागू करना चाहिए।
जिससे राजधानी लखनऊ में लगभग अवैध बिल्डिंगों संख्या कम हो सके और लोग आसानी से फ्लैट को खरीद सकते हैं, क्योंकि एलडीए द्वारा मानचित्र स्वीकृति के बाद किसी भी बैंक से उन्हें आसानी से लोन मिल सकता है। लेकिन ऐसा करने से एलडीए के भ्रष्ट अधिकारियों की काली कमाई बंद हो जाएगी।
जो किसी भी सूरत में एलडीए के भ्रष्ट अधिकारियों को मंजूर नहीं है और यही कारण है कि पुराने मानक को वर्ष 2022 में भी जनता के ऊपर थोपने का काम कर रहे हैं।
अब देखने वाली बात यह है की योगी की जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली सरकार एलडीए के पुराने घिसे पीटे मानकों में कब सुधार लाती है।
जनता को वैध और अवैध के मकड़जाल से कब तक मुक्ति दिलाती है।