उत्तर प्रदेश में होने वाले नगर निकाय चुनाव को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने अहम फैसला सुनाते हुए ओबीसी आरक्षण को रद्द कर दिया है।ओबीसी के लिए आरक्षित अब सभी सीटें जनरल मानी जाएंगी।हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग को तत्काल निकाय चुनाव कराने का भी निर्देश दिया है।कोर्ट ने कहा कि जब तक ट्रिपल टेस्ट का अनुपालन न हो, तब तक ओबीसी आरक्षण नहीं होगा और इसलिए सरकार बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव करवाए।
जस्टिस डी.के. की खंडपीठ उपाध्याय और जस्टिस सौरभ लवानिया की पीठ ने अपना 87 पेज का निर्णय देते हुए,निम्नलिखित निर्देशों के कई रिट याचिकाओं की अनुमति दी है।उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शहरी विकास विभाग में धारा 9-ए(5)(3) के तहत जारी अधिसूचना दिनांक 05.12.2022 एतद् द्वारा निरस्त की जाती है।
राज्य सरकार द्वारा जारी शासनादेश दिनांक 12.12.2022 जो उत्तर प्रदेश पालिका केन्द्रीकृत सेवा (लेखा संवर्ग) में कार्यपालक अधिकारियों एवं वरिष्ठतम अधिकारी के संयुक्त हस्ताक्षर से नगर पालिकाओं के बैंक खातों के संचालन का प्रावधान करता है,को भी निरस्त किया जाता है।
कोर्ट ने कहा कि यह भी निर्देश दिया जाता है कि जब तक राज्य सरकार द्वारा के कृष्ण मूर्ति (सुप्रा) और विकास किशनराव गवली (सुप्रा) में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए ट्रिपल टेस्ट/शर्तों को हर तरह से पूरा नहीं किया जाता है,तब तक पिछड़े वर्ग के लिए कोई आरक्षण नागरिकों को प्रदान किया जाएगा और चूंकि नगर पालिकाओं का कार्यकाल या तो समाप्त हो गया है या 31.01.2023 तक समाप्त होने वाला है और ट्रिपल टेस्ट/शर्तों को पूरा करने की प्रक्रिया कठिन होने के कारण इसमें काफी समय लगने की संभावना है, यह निर्देश दिया जाता है कि राज्य सरकार / राज्य चुनाव आयोग चुनावों को तुरंत अधिसूचित करेगा।निर्वाचनों को अधिसूचित करते समय अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों को छोड़कर अध्यक्षों के पदों और कार्यालयों को सामान्य/खुली श्रेणी के लिए अधिसूचित किया जाएगा। चुनाव के लिए जारी होने वाली अधिसूचना में संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार महिलाओं के लिए आरक्षण शामिल होगा।
यदि नगरपालिका निकाय का कार्यकाल समाप्त हो जाता है, तो निर्वाचित निकाय के गठन तक ऐसे नगर निकाय के मामलों का संचालन संबंधित जिला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति द्वारा किया जाएगा, जिसमें से कार्यकारी अधिकारी / मुख्य कार्यकारी अधिकारी/नगर आयुक्त सदस्य होंगे। तीसरा सदस्य एक जिला स्तरीय अधिकारी होगा जिसे जिला मजिस्ट्रेट द्वारा नामित किया जाएगा।
हालांकि उक्त समिति संबंधित नगर निकाय के केवल दिन-प्रतिदिन के कार्यों का निर्वहन करेगी और कोई बड़ा नीतिगत निर्णय नहीं लेगी। हमने भारत के संविधान के अनुच्छेद 243-यू के प्रावधानों द्वारा निर्देशित होने वाले चुनावों को तुरंत अधिसूचित करने का निर्देश जारी किया है, जो कि एक नगर पालिका का गठन करने के लिए चुनाव की अवधि समाप्त होने से पहले पूरा किया जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि हम समझते हैं कि समर्पित आयोग द्वारा सामग्रियों का संग्रह और मिलान एक भारी और समय लेने वाला कार्य है, हालांकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 243-यू में निहित संवैधानिक जनादेश के कारण चुनाव द्वारा निर्वाचित नगर निकायों के गठन में देरी नहीं की जा सकती है। इस प्रकार समाज के शासन के लोकतांत्रिक चरित्र को मजबूत करने के लिए यह आवश्यक है कि चुनाव जल्द से जल्द हों जो इंतजार नहीं कर सकते।
कोर्ट ने कहा कि हम यह भी निर्देश देते हैं कि एक बार शहरी स्थानीय निकायों के चुनावों के संदर्भ में पिछड़े वर्ग के नागरिकों को आरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ के रूप में अनुभवजन्य अध्ययन करने की कवायद करने के लिए समर्पित आयोग का गठन किया जाता है। नागरिकों के पिछड़े वर्ग में शामिल करने के लिए ट्रांसजेंडरों की संख्या पर भी विचार किया जाएगा।