लखनऊ
आजकल लगातार फर्जी प्रमाण पत्र पर नौकरी करने वालों की खबर सामने आ रही है। हांलांकि फर्जीवाड़े का खेल बहुत पहले से खेला गया है। लेकिन अच्छी बात है कि धीरे-धीरे ऐसे फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी पाने वालों असलियत के सामने आ रही है।
ताजा मामला राजधानी लखनऊ के चारबाग में नियुक्त रही एक महिला क्लर्क का सामने आया है। जहां फर्जी प्रमाणपत्र के सहारे नौकरी हासिल करने के बारे में लखनऊ में एक ऐसा मामला सामने आया है, जहां न सिर्फ एक महिला (मधु पाल) ने हाईस्कूल के फर्जी प्रमाणपत्र/दस्तावेजों के जरिए लोको वर्कशाप उत्तर रेलवे चारबाग लखनऊ में जूनियर क्लर्क की नौकरी हासिल की, बल्कि बाद में मुख्य कार्यालय अधीक्षक बनकर रिटायर भी हुई। इस बीच कई बार शिकायत मिलने के बाद भी रेलवे प्रशासन सोता रहा। जिसका नतीजा यह हुआ कि उपरोक्त महिला के द्वारा 35 वर्ष रेलवे में नौकरी कर लगभग ढाई करोड़ रूपये कमाए और अन्य लाभ, सुविधाए लेकर रिटायर हो गयी और अब पेंशन भी ले रही है।
इस मामले की शिकायत लेकर उक्त महिला के पूर्व पति के परिवार के सदस्य पिछले दो साल से रेल विभाग और अधिकारियों का चक्कर लगाते रहे लेकिन अफसरशाही का रवैय्या मामले का संज्ञान न लेना का बना हुआ है। न ही उपरोक्त महिला के खिलाफ कोई कार्यवाही की गई, बल्कि पूरा रेलवे महकमा उपरोक्त महिला का मददगार बना हुआ है।
फर्जी प्रमाणपत्र का खुलासा एक आरटीआई आवेदन के जवाब में मिले पत्र से हुआ, जिसमें उल्लेख किया गया कि मधु पाल ने जिस चुटकी भण्डार गर्ल्स इंटर मीडिएट कालेज, हुसैनगंज, लखनऊ से हाईस्कूल की परीक्षा वर्ष 1983 में दी थी (रोल नम्बर 1047582) उसका परीक्षा परिणाम अपूर्ण (आईएनसी) था। परीक्षा परिणाम अपूर्ण होने की दशा में माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा प्रमाण पत्र निर्गत नहीं किया जाता है। यह जानकारी उपरोक्त स्कूल प्रशासन ने आरटीआई में दी।
वहीं एक अन्य आरटीआई का जवाब देते हुये अपर सचिव माध्यमिक शिक्षा परिषद ने कहा कि माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश द्वारा न ही वर्ष 1983 में और न ही वर्तमान समय में, किसी छात्र को सीधे तौर पर प्रमाण पत्र प्रदान करने का कोई नियम है। रिजल्ट अपूर्ण को इनकम्पलीट से कम्पलीट करने के बाद प्रमाण पत्र जिला विद्यालय निरीक्षक के पास जाता है और फिर सम्बन्धित विद्यालय/कालेज के प्रधानाचार्य के पास जाता है। तत्पश्चात छात्र को प्रमाण पत्र प्रदान किया जाता है। आरटीआई में यह भी खुलासा हुआ कि उपरोक्त महिला की नियुक्ति के समय पुलिस विवेचना तक नही की गयी थी जो नियम के अंतर्गत रेलवे में किसी भी पद पर व किसी भी प्रकार की नियुक्ति से पूर्व कराना अनिवार्य है।
इस मामले की शिकायत पीड़ित सदस्यों ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री कार्यालय व उत्तर रेलवे के शीर्ष अधिकारियों से की है, लेकिन लोको वर्कशाप लखनऊ के अधिकारी इस महिला के खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही नही करते हुए उसके बचाव में लगे हुये हैं।