इन दिनों निकाय चुनाव को लेकर छोटी-छोटी पार्टियां भी बड़े-बड़े दावे करने लगी हैं साथ ही बड़ी पार्टियों के दावेदार तो बड़े-बड़े सपने भी दिखा रहे हैं।
निकाय चुनाव में भले ही छोटी पार्टियां बड़े-बड़े दावे करें पर जमीनी हकीकत देखी जाए तो अपने दम पर कोई बड़ा कारनामा नहीं दिखा पाई हैं। कई तो खाता भी नहीं खोल पाए। यह बात अलग है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में गठबंधन का सहारा लेकर वे कुछ सीटें जीतने में जरूर सफल होते रहे हैं। वर्ष 2017 के निकाय चुनावी परिणाम पर नजर डालें तो छोटे दलों के दावों की हकीकत अपने-आप पता चल जाती है। इनसे बेहतर तो निर्दलीय रहे हैं।
गठबंधन का सहारायूपी की राजनीति में जातियां और क्षेत्रीय पार्टियों की संख्या कम नहीं हैं। इसके आधार पर छोटी-छोटी पार्टियां बनती जा रही हैं। इन पार्टियों की कोशिश होती है कि चुनावों में इनकी राष्ट्रीय या बड़ी क्षेत्रीय पार्टियों से गठंधन हो जाए। बड़ी पार्टियां भी इनकी बिरादरी या फिर क्षेत्र का वोट पाने के लिए गठबंधन कर लेती हैं, जिसका इन्हें फायदा मिलता है। पर, निकाय चुनाव के पिछले परिणामों को देखा जाए तो इनका क्षेत्रीयता या जातीयता का जादू का असर कुछ खास नहीं रहा है।